प्रेम दिवस के साथ ही नागफनियां भी उगने लगती हैं। कालिया खिलने
लगती है | जवां दिल हिलोरे मारना शुरू कर देता है | युगल लुकाछिपी शुरु कर देते हैं।
प्रेम पार्क की तलाश में निकल जाते है | ये प्रेम पुजारी बचते रहते हैं कि कहीं श्रीराम
भक्तों ,बजरंग दल,शिव सेना द्वारा घंटा न बज जाए। सहीराम ने अपने कवि मित्र जय से पूछा कि इस बार क्या प्रोग्राम है। उन्होनें
दबी जुबान से कहा कि क्या बताएं, मंहगाई ने जेब ढीली कर दी है और शिव,राम की सेना ने. . .।
मधुमास मनाने की संभावनाएं बनने से पहले बिगड़ जाती हैं। प्रेम
शुरू करने से पहले समाप्त हो जाती है | आप तो जानते ही हैं कि लव मी, लव माई डाग। दरअसल उनका डॉग बेस्लम डॉग
है, बहुत चटोर है। हमेशा
बढ़िया चाकलेट , बर्गर, पिज्जा ही खाता है। लव के चक्कर में डॉग की इतनी सेवा हो गई
कि मधु चन्द्रिका की मिलन यामिनी को मंहगाई का ग्रहण लग गया। इस बार मधुमास को खास
बनाने की सारी योजनाएं पानी भरती नजर आ रही हैं। फिर भी बड़ी मुश्किल से अठन्नी-चवन्नी जोड़कर रखा था कि 14 फरवरी को प्रेम दिवस मना ही लेंगे
| लेकिन डर लग रहा है कि पकड़े गए तो स्वघोषित नैतिक ब्रिगेड के सैनिक कहीं तेरही और श्राद्ध न कर दें। सुना है जितना राम ने सीता
को नहीं खोजा था उससे अधिक श्री राम सेना वाले प्रेमी युगलों को खोज रहे हैं। अब सच
बताएं सहीराम जी किसी ने सच ही कहा है कि ये इश्क नहीं आसां.... बस समझ लो आग का दरिया है डूब के
जाना है।
सहीराम जी पिछले दिनों एक अद्भुत दुर्घटना मेरे साथ हो गई, वसंत के आगमन पर शहर के घोषित रसिकों
ने हमेशा की तरह ‘प्रेम पियासाज् कवि
सम्मेलन किया उसमें मुझे भी आमंत्रित किया गया था। सच कहूं तो ‘मंच पर कविता पाठ का
आमंत्रण पाकर मन लबालब हो गया। मैंने एक साल से कठिन परिश्रम से लिखी हुई कविता शुरू
की, ‘मोहिनी तेरे नैन कटार, झंकृत होते मन के तार अभी स्वर पंचम तक
पहुंचा ही था कि मंच के पीछे भगवा और त्रिशूल धारी भाइयों को अचानक देखा और मेरी श्रृंगार
रस की कविता वीर रस में बदल गई। सहीराम ने आगे पूछा, क्या आपने कविता आगे सुनाई? मैंने कहा हां लेकिन ऐसे- ‘गोरी तेरे नैन कटार, कर दुश्मन को तार-तार। तोड़, मरोड़ गर्दन उसकी, बैरी छुपा है सीमा पार।
परेशानी तब हो गई जब इस अद्भुत कविता को सुनाकर श्रोताओं ने मुझे श्रृगांर और वीर रस के संयुक्त कवि ‘रसिक विद्रोही’ की संज्ञा दे दी। रसिक विद्रोही ने आंख बंद कर संत वेलेंटाइन के प्रेम मंत्र का जप किया और प्रार्थना की कि हे संत जी इन घोंघा बसंतों को सपने में समझाओ, साथ में कवि बिहारी से भी अनुरोध किया और कहा, हे रीतिकाल के केशव इन्हे विरह व्यथा से अवगत कराओ शायद इनका पाषाण हृदय पिघल जाए। इस व्यथा को सुनने के बाद सहीराम ने कहा, इस नैतिक ब्रिगेड से मुझे भी चिंता है क्योंकि इश्क तो ऐसा गुनाह है जो कुवारों के अलावा शादीशुदा भी बड़े मन से करता है।
परेशानी तब हो गई जब इस अद्भुत कविता को सुनाकर श्रोताओं ने मुझे श्रृगांर और वीर रस के संयुक्त कवि ‘रसिक विद्रोही’ की संज्ञा दे दी। रसिक विद्रोही ने आंख बंद कर संत वेलेंटाइन के प्रेम मंत्र का जप किया और प्रार्थना की कि हे संत जी इन घोंघा बसंतों को सपने में समझाओ, साथ में कवि बिहारी से भी अनुरोध किया और कहा, हे रीतिकाल के केशव इन्हे विरह व्यथा से अवगत कराओ शायद इनका पाषाण हृदय पिघल जाए। इस व्यथा को सुनने के बाद सहीराम ने कहा, इस नैतिक ब्रिगेड से मुझे भी चिंता है क्योंकि इश्क तो ऐसा गुनाह है जो कुवारों के अलावा शादीशुदा भी बड़े मन से करता है।
जय सिंह
(पत्रकार,कवि,व्यंगकार,कहानीकार)