क्या आप सौ फीसदी विश्वास
के साथ कह सकते हैं कि कन्या भ्रूण समझकर जो भ्रूण नष्ट कराया है वह वाकर्इ लड़की
का भ्रूण था। यह कदम उठाने के पहले कितने विषेशज्ञों की राय ली थी, क्या आपको
मालूम है गर्भपात के आंकड़ों के मुताबिक कन्याभ्रूण नष्ट कराने वाले धोखे में
लड़के का भ्रूण भी नष्ट करा रहे है। एक फुंसी का आपरेशन कराने से पहले व्यकित
सेकेन्ड ओपीनियन जरूर लेता है लेकिन लड़की का भ्रूण नष्ट करना इतना आसान है कि कभी कोर्इ पुत्रीहन्ता सेकेन्ड
ओपीननियन की जरूरत नहीं समझता। अल्ट्रासाउन्ड क्लीनिको व गर्भपात क्लीनिको के
व्यावसायिक लाभ को नहीं समझ पाने वाले पढे-लिखे साधन सम्पन्न लोग आंख मुंदकर उनकी
सलाह पर भरोसा करके भ्रूण नष्ट करा देते है। भ्रूण नष्ट होने के बाद उन्हे यह
सच्चार्इ कौन बताएगा कि जिस भ्रूण को उन्होने नष्ट कराया वह कन्या भ्रूण नहीं था।
इस धोखेबाजी को वे किसी अदालत में चुनौती नहीं दे सकते हैं क्योकि उन्होने
गैरकानूनी ढंग से यह काम कराया था। चोरी छिपे इस काम को अंजाम देने वाले क्लीनिक
संचालक इस तथ्य को बखूबी समझते हैं। उन्हे मालूम है कि पहले आप भू्ण परीक्षण की
मोटी फीस अदा करेगे और अगर कह दिया जाए कि गर्भ में पल रही संतान बेटी है तो बेटे
की चाहत में परीक्षण कराने आए दम्पति गर्भ भी यहीं नष्ट कराएंगे जिसकी फीस इससे
अतिरिक्त होगी और तो और उनके झूठ को कोर्इ नहीं पकड़ पायेगा क्योकि पुत्र की चाह
में अंधे लोग कभी इस बात की जरूरत नहीं समझते कि गर्भ नष्ट कराने से पहले अपने कुछ
खास मित्रों या सम्बंदितों से ओपिनियन ले ली जाए कि क्या गर्भ में पल रही संतान
वाकर्इ लड़की ही है।
लड़की यहां मानव जाति की
जननी है समाज को जोड़ने वाली एक ऐसी कड़ी है जो अपने स्नेह धैर्य एवं अनुराग द्वारा
सामाजिक जीवन में सुख की अभिवृद्धि करती है। बच्चों का लालन पालन परिवार की
व्यवस्था तथा परिवार के सांस्कृतिक क्रिया कलापों में स्त्रियों की भूमिका सबसे
महत्वपूर्ण होती है, चूकि पारिवारिक
संगठन, सामाजिक संगठन का
मूल आधार है। अतः समाज में स्त्रियों का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है, किन्तु
स्त्री का सामाजिक स्तर प्रत्येक काल में समान नहीं रहा है।
नारी, महिला, औरत, स्त्री। चक्षु, दृष्टि, नेत्र, नजर, आख। सूर्य, दिनकर, भास्कर, सूरज। मनुष्य, मानव, पुरूष, आदमी...............।
इस तरह के और ढ़ेर सारी संज्ञाएं और उनके पर्यायवाची। सभी के एक ही अर्थ लेकिन
प्रयोग की व्यावहारिक भाषा में आते ही परिवर्तित रूप। प्रयोग की बारम्बारता ने इन
शब्दों के स्वतः नये अर्थ गढ़ दिये और यही वजह रही कि “सम्भ्रान्त औरत” “चक्षु चिकित्सालय” “भास्कर ग्रहण” “पर आदमी” जैसे संयुक्त शब्द
कहीं कोई गलती से लिख डाले तो अर्थ एक होते हुए भी यह हास्यास्पद प्रयोग हो जाता
है।
भारत में बच्चे पैदा
करना इतना आसान है कि एक बार एक डाक्टर ने किसी लेख में अपना अनुभव लिखा। एक मजदूर
की नन्ही बच्ची बहुत बीमार थी और अस्पताल में भर्ती करायी गयी। अस्पताल सरकारी
होने के कारण इलाज मुफ्त था। बच्ची के शरीर में खून की बहुत कमी थी। उस मजदूर को
सलाह दी गयी कि वह या उसकी पत्नी बच्ची को खून दे ताकि उसका जीवन बचाया जा सके। उस
व्यक्ति ने हाथ जोडते हुए जवाब दिया डाक्टर साहब मेरे चार बच्चे है। इसके मर जाने से कुछ
नहीं होगा लेकिन अगर खून देने से मुझे कुछ हो गया तो मेरे परिवार का पालन-पोषण कौन
करेगा। बच्ची तो दोबारा हो जाएगी। जब पत्नी से खून देने की बात कही गयी तो वह भी
इधर-उधर देखने लगी। धीरे से दोनों वहां से खिसक लिए और फिर वापस बच्ची देखने अस्पताल
नहीं आये। भारत में यह वक्त है एक बच्चे की जान की वह भी मां -बाप की निगाह में।
उसी तरह पुत्र की चाहत में अंधे मां-बाप अपने हाथों पैसा
खर्च करके बेटी की हत्या करा देते है और कभी सच्चार्इ परखने के लिए दूसरी सलाह
लेने पर तीन-चार हजार रूपए दोबारा खर्च करना मुनासीब नही समझते। उन्हें मालूम है
कि बच्चे पैदा करना तो सालाना फीचर है।
अगर इसी तरह जांच -परख कर बेटियां मारते
रहोगे तो सच में एक दिन वह आएगा जब महिलाए भी दुर्लभ प्रजाति घोषित कर दी जाएगी।
अगर जरा भी संवेदनशीलता होगी तो यह जानकर कलेजा मुंह को आ जाएगा कि सिर्फ पंजाब
में पिछले एक दशक में छह लाख 21 हजार 790 लडकियों की पहचान
करके गर्भ में ही हत्या कर दी गयी। भारत में कुछ
राज्यों में 1000 लड़को के सापेक्ष लड़कियों की क्या स्थिति है ये इस पर भी एक
नजर डालें .........
भारत
के राज्यों में लिंगानुपात
|
||||
|
राज्य / Union Territory (U.T.)
|
लिंगानुपात
2011 |
लिंगानुपात
2001 |
बदलाव 2001 - 2011
|
1
|
केरल (Kerala)
|
1,084
|
1,058
|
+26
|
2
|
पुद्दुचेरी (Puducherry)
|
1,038
|
1,001
|
+37
|
3
|
तमिलनाडु (Tamil Nadu)
|
995
|
986
|
+9
|
4
|
आंध्रप्रदेश (Andhra Pradesh)
|
992
|
978
|
+14
|
5
|
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh)
|
991
|
990
|
+1
|
6
|
मणिपुर (Manipur)
|
987
|
978
|
+9
|
7
|
मेघालय (Meghalaya)
|
986
|
975
|
+11
|
8
|
उड़ीसा (Odisha)
|
978
|
972
|
+6
|
9
|
मिजोरम (Mizoram)
|
975
|
938
|
+37
|
10
|
हिमांचल प्रदेश (Himachal Pradesh)
|
974
|
970
|
+4
|
11
|
कर्नाटक (Karnataka)
|
968
|
964
|
+4
|
12
|
गोवा (Goa)
|
968
|
960
|
+8
|
13
|
उतराखंड (Uttarakhand)
|
963
|
964
|
-1
|
14
|
त्रिपुरा (Tripura)
|
961
|
950
|
+11
|
15
|
असम (Assam)
|
954
|
932
|
+22
|
16
|
झारखण्ड (Jharkhand)
|
947
|
941
|
+6
|
17
|
वेस्ट बंगाल (West Bengal)
|
947
|
934
|
+13
|
18
|
लक्षद्वीप (Lakshadweep)
|
946
|
947
|
-1
|
19
|
नागालैंड (Nagaland)
|
931
|
909
|
+22
|
20
|
मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh)
|
930
|
920
|
+10
|
21
|
राजस्थान (Rajasthan)
|
926
|
922
|
+4
|
22
|
महाराष्ट्र (Maharashtra)
|
925
|
922
|
+3
|
23
|
अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh)
|
920
|
901
|
+19
|
24
|
गुजरात (Gujarat)
|
918
|
921
|
-3
|
25
|
बिहार (Bihar)
|
916
|
921
|
-5
|
26
|
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh)
|
908
|
898
|
+10
|
27
|
पंजाब (Punjab)
|
893
|
874
|
+19
|
28
|
सिक्किम (Sikkim)
|
889
|
875
|
+14
|
29
|
जम्मू और कश्मीर (Jammu and Kashmir)
|
883
|
900
|
-17
|
30
|
Andaman and Nicobar Islands
|
878
|
846
|
+32
|
31
|
हरयाणा (Haryana)
|
877
|
861
|
+16
|
32
|
दिल्ली (Delhi)
|
866
|
821
|
+45
|
33
|
चंडीगढ़ (Chandigarh)
|
818
|
773
|
+45
|
34
|
दादर और नगर हवेली (Dadra and Nagar Haveli)
|
775
|
811
|
-36
|
35
|
दमन और दीव (Daman and Diu)
|
618
|
709
|
-91
|
|
भारत (INDIA) कुल औसत (Total average)
|
943
|
933
|
+10
|
श्रोत -http://www.census2011.co.in/,
http://www.indiaonlinepages.com/
अभी भी लड़कियों को
बचाने के लिए पूर्ण रूप से भ्रूण हत्या पर रोक लगाना पड़ेगा और आम जन में बेटियों
के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाने के लिए उनमे जागरूकता लाना होगा, जिससे की लड़को
की तरह ही लड़कियों को प्यार और सम्मान मिले |
जितना ध्यान शेर चीतों की नस्ल को बचाने में दिया जा रहा है
उससे ज्यादा ध्यान अपनी नस्ल को बचाने मे दिये जाने की जरूरत है। इतनी कमी मत होने
देना कि रिश्तों का भेद ही समाप्त हो जाए, शरीर की भूख के आगे बेटी, बहन, मां का भेद मिट जाए
और वह सिर्फ मादा नजर आने लगे। पंजाब वह प्रांत है जहां महिलाओं का आंकडा सबसे
कमजोर है। हालांकि उसमें थोड़ा सुधार जरूर हुआ है। इस सुधार के लिए श्रेय पाने की
होड़ लगी है। सभी अपनी छाती ठोक रहे है। लेकिन वहां हुर्इ लगभग सात लाख कन्या
भ्रूण हत्याओ की जिम्मेदारी कौन लेगा, सभी मौन है। और यह पाप करते जा रहे है। सरकार द्वारा
बेटियों के लिए बहुत सारी योजनायें चला रही है जिससे की बेटियों को बचाया जा सके,
उनको भी जीने का अधिकार और सम्मान से रहने का हक मिल सके |
महिला विकास योजनाएं
सरकार महिला कल्याण तथा उनके विकास के लिए समय-समय पर विकास
कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं का क्रियान्वयन करती है। योजनाओं का क्रियान्वयन सरकार
द्वारा प्रेरित स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय, श्रम मंत्रालय, समाज कल्याण विभाग तथा ग्राम विकास
मंत्रालय आदि द्वारा उपयोगी योजना का संचालन किया जाता है। सभी योजनाएं महिलाओं को
आर्थिक तथा सामाजिक रूप से स्वतंत्र बनाने तथा उनकी आय में निरन्तर वृद्धि के लिए
शिक्षा, तकनीकी व व्यवसायिक
प्रशिक्षण की दशा और दिशा की ओर प्रभावी है। सरकार द्वारा संचालित प्रमुख उपयोगी
योजनाएं निम्नवत है-
वर्ष
|
योजनाएं
|
प्रमुख लक्ष्य विवरण
|
1997
|
कस्तूरबा गांधी शिक्षा योजना
|
महिला साक्षरता दर में वृद्धि तथा विशेष विद्यालयों
की स्थापना।
|
2000
|
स्त्री शक्ति पुरस्कार योजना
|
महिलाओं के अधिकार के लिए संघर्षरत महिलाओं को राष्ट्रीय
पुरस्कार से सम्मानित कर प्रोत्साहित करना।
|
2001
|
महिला स्वाधार योजना
|
स्वयं सहायता समूहों के गठन के माध्यम से महिलाओं
का अर्थिक सामाजिक तथा उनके सशक्तिकरण के पक्ष को सशक्त करना।
|
2001
|
राष्ट्रीय पोषाहार मिशन योजना
|
गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों, गर्भवती
महिलाओं, किशोरियों को सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध कराना।
|
2003
|
जीवन भारती महिला सुरक्षा योजना
|
आयु वर्ग 18 से 50 वर्ष की महिलाओं को गंभीर बीमारी तथा उनके शिशु के
जन्मजात अपंगता पर सुरक्षा प्रदान करना।
|
2003
|
जननी सुरक्षा योजना
|
गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य केन्द्र में पंजीकरण
तथा शिशु जन्म उपरान्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना।
|
2003
|
मौलाना आजाद राष्ट्रीय छात्रवृत्ति
|
अल्पसंख्यक समुदाय में गरीब प्रतिभाशाली लड़कियों को
उच्च शिक्षा हेतु विशेष छात्रवृत्ति प्रदान करना।
|
2004
|
वंदेमातरम् योजना
|
गरीब व पिछड़े वर्गो की गर्भवती महिलाओं के लिए
स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं
|
2004
|
कस्तूरबा गांधी विद्यालय योजना
|
बलिकाओं का शैक्षणिक पिछड़ापन दूर करने के लिए
आवासीय विद्यालय ।
|
2005
|
जननी सुरक्षा योजना
|
गर्भवती
महिलाओं के लिए स्वास्थ्य संबंधी वाहन जैसी सुविधाओं के लिए नकद राशि प्रदान
किया जाता है।
|
2011
|
सबला सषक्तिकरण योजना
|
11 से 18 साल की बालिकाओ के स्वास्थ्य
परीक्षण और स्वास्थ्य सुधार करने के लिए उनके खान-पान की सुविधाए प्रदान करना।
|
2014
|
मिशन इन्द्रधनुष
|
गर्भवती महिलाओं को स्वस्थ्य बच्चे जनने के लिए एक
बार में सात रोगरोधक टिके का एक टिका
लगाये जाते है।
|
2014
|
उड़ान योजना
|
लड़कियो को तकनीकी शिक्षा देने के लिए प्रोत्साहन
राशि प्रदान किया जाता है।
|
2015
|
प्रधानमंत्रत्री उज्ज्वला योजना
|
ग्रामीण गरीब महिलाओं को धुआं रहित भोजन पकाने के
लिए निःशुल्क एलपीजी कनेक्शन वितरण किया जाता है।
|
2015
|
प्रधानमंत्री सुकन्या समृधि योजना
|
0-14 वर्ष की लडकियों के लिए
भविष्य सुरक्षा बचत योजना डाकधर के माध्यम से धनराशि जमा कराई जाती है।
|
2016
|
बेटी बचाओ बेटी पढाओ
|
भ्रुण हत्या रोकने के लिए और बच्चीयों को पैदा कर
उन्हे अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए योजना चलाई गई है |
|
इन योजनाओं की
सहायता से लड़कियों को पढ़ाई के जरिए सामाजिक और वित्तीय तौर पर आत्मनिर्भर बनाना
है। सरकार के इस नजरिए से महिलाओं की कल्याण सेवाओं के प्रति जागरूकता पैदा करने
और निष्पादन क्षमता में सुधार को बढ़ावा मिलेगा।
राज्य/राष्ट्रीय महिला नीति-
राज्य महिला नीति महिलाओं के प्रति हमारी वचनबद्धता को एक
ठोस औपचारिक रूप देने का चरण है,
यह भारत
के संविधान में वर्णित एवं अंतराष्ट्रीय संधियों में हस्ताक्षरित भेद भाव मुक्त
समतापूर्ण समाज के निर्माण का भी वचन है। हम एक ऐसा राज्य बनाने के लिए प्रतिबद्ध
है जहां महिलाएं सशक्त हों और विकास के सभी निर्णयों की प्रक्रियाओं में उनकी
बराबर की भागीदारी हो। हमारी दृष्टि से सशक्तिकरण का अभिप्राय भौतिक संसाधनों, बौद्धिक संसाधनों
एवं विचारधारा पर नियंत्रण है।
डा0 भीमराव अम्बेडकर
द्वारा बनाये गए भारत का संविधान विकास की प्रक्रिया में महिलाओं को समान अधिकर का
अवसर देता है। अनुच्छेद चौदह,
पन्द्रह
और सोलह में इसका उल्लेख किया गया है। संविधान के यह अनुच्छेद कानून के समक्ष
बराबरी और रोजगार के समान अवसर की गारंटी देते है। और राज्य को यह शक्ति देते हैं की
वह महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान कर सके। मूलभूत अधिकारों की तरह
संविधान के निर्देशक सिद्धांत भी ऐसे साधन है जिनके द्वारा न्याय, स्वतंत्रता और समता
का हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। अनुच्छेद 39(A), (D) और (E) तथा
अनुच्छेद 42 निर्देशक सिद्धांत पुरूषों और महिलाओं को आजीविका के
पर्याप्त अवसर पाने के अधिकार, समान काम के लिए समान वेतन, पुरूष -महिला और बाल
कामगारों के स्वास्थ्य और शक्ति की सुरक्षा, काम की न्यायपूर्ण और मानवीय परिस्थितियों और
मातृत्व की सुरक्षा का आग्रह करता है। भारत के संविधान में निहित महिलाओं की
प्रतिष्ठा और विकास के लिए आवश्यक विधान के आधार पर प्रदेश की यह महिला नीति बनाई
गई है। महिला सशक्तिकरण महिला कल्याण या कृपा पर आधारित दृष्टि नहीं है यह महिलाओं
के मूल अधिकारों को सुनिश्चित कराने की रणनीति है।
प्रदेश सरकारों की
मान्यता है कि यदि महिलाओं को समर्थ बनाना है तो महिलाओं को दबाकर रखने वाली
ताकतों के खिलाफ निरन्तर सामूहिक संघर्ष करना होगा। प्रदेश सरकार चाहती है कि जो
भी सामाजिक, राजैतिक, आर्थिक,
बौद्धिक
और सांस्कृतिक संसाधन समाज के पास है उनके न्यायपूर्ण पुनर्वितरण की प्रक्रिया पर
जोर दिया जाये ताकि महिलाओं को उनमें बराबर का हक मिल सके। प्रदेश सरकार महिलाओं
के उत्पादक ओर पुनरोत्पादक श्रम को व काम और सम्पत्ति पर उनके समान अधिकार को
मान्यता देती है। हर क्षेत्र में चाहें वह परिवार, कार्यस्थल या समुदाय हो, महिलाओं को निर्णय
लेने के समान अवसर देने को भी प्रदेश मान्य करता है। इसके अलावा ज्ञान प्राप्त के
समान अवसर, जीने का अधिकर और
बालिकाओं के लिए समान अवसर को भी स्वीकार करता है।
राज्यों की महिला नीति ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास करेगी
जिसमें महिलाओं के ज्ञान व योगदान को स्वीकार किया जाये, महिलाएं भयमुक्त हो, उनका आत्मसम्मान एवं गरिमा बढे उनका अपने
जीवन व शरीर पर नियंत्रण बढे,
वे
आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनें। जमीन व सम्पत्ति पर उनका नियंत्रण हो वे शिक्षित हो
और उनका कार्य बोझ कम हो। उनका कौशल व दक्षता बढे और वे अन्य महिलाओं के साथ संगठन
बना सकें। परिवारों में व समुदायों में उनकी परम्परागत भूमिकाएं सकारात्मक रूप से
बदले तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी बराबर की भागीदारी हो।
बेटियों
को कमतर नहीं समझें बेटों जैसा ही व्यवहार और सुविधाए दिया जाना चाहिए, तभी बेटी
बचाओ बेटी पढाओ का नारा चरितार्थ हो पायेगा
जय सिंह
9450437630