सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

कहानी :::::::: श्याम की मीरा


               
   
शाम को आपके अचानक मेरे घर से मुझसे बताये बिना चले जाने से घर तथा मेरा जीवन एकदम सुना-सुना लगने लगा। मेरा मन हमेशा खुश रहने वाला, अब बेहद उदास रहता है। नजरे चारो तरफ आप को ही ढुढ़ती है। जब कभी 'काल बेल' की घंटी बजती है तो मुझे आपकी पहले जैसा रोज घर आने की याद जाती है और मैं तेजी से दौड़कर गेट पर जाती हूं। जब आप मेरे घर में पहले मेरे मेरे परिवार के साथ रहते थे तो मुझे बहुत अच्छा लगता था परन्तु अब .............................................................
दोपहर की नींद जो कभी मुझे बहुत प्यारी थी आज बोझिल लग रही है। आपकी आवाज व्यवहार में अब वह अपनापन नहीं रहा जो पहले हुआ करता था ! मन अतीत की स्मृतियों में खोने लगा। आज से पांच साल पहले जब मैं स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही थी तभी अचानक आपको अपने कमरे की तरफ आते हुए देखकर अनायास ही मेरे मुंह से निकल गया 'विल यू ड्राप मी' मुझे एहसास हो रहा था कि आप इन्कार नहीं करेगें। क्यों कि किसी की बातों को या काम को करने से इन्कार करना आप जानते ही नहीं थे। सभी की भावनाओं का कद्र करते थे। आपकी चमकती आखों ने आपकी खुशी-खुशी इजाजत का इजहार कर दिया था। अगले पल हम साथ थे आपके बाइक पर। पहले आपको इस तरह खुश मैनें कभी नहीं देखा था। स्कूल पहुंच कर पता चला कि आज क्लास बंद है। मुझे वापस घर जाने की बजाय आपसे गाड़ी दूसरी ओर मुड़वा ली और शुरू हुआ हमारी बातों का सिलसिला, वही सिलसिला पता नहीं किस छड़ प्यार में बदल गया।
बहुत खुश थी मैं उस दिन का आपका साथ पाकर। हम दोनों की ही अपनी सीमाएं थी। आप एक बेहद लोकप्रिय जाने माने तेज तर्रार पत्रकार के साथ-साथ एक कवि और मैं साधारण सी कक्षा 10वीं की एक होनहार छात्रा। उससे बड़ी त्रासदी थी हम दोनों का दूर का रिश्तेदार होना। हम दोनों का परिवार सभ्य ऊचीं शोहरत वाला था। मेरे  पिता जिले के एक बड़े अधिकारी थे वहीं आपके पिता सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर कार्यरत थे। हमने अपनी सामाजिक परिवारिक सीमाओं में रहकर प्यार किया। यह मिलन अब तक हमेशा सिर्फ आत्मा का रहा, शरीर हमारे दूर ही रहे। हालाकि मन तड़पता था आपकी बांहों में आनें के लिए तभी तो थोड़ी देर के लिए ही सहीं मैं अपने प्रियतम का साथ पाना चाहती थी। शहर के जानी मानी हस्ती थे आप। सभी रिश्तेदारियों में आपकी समझदारी निर्णय लेने की लोकप्रियता इतनी थी कि हर रिश्तेदार अपना काम करने से पहले आपसे राय-मशविरा लेता था। शायद इसीलिए आपने हमेशा अपने दिमाग पर दिल को हावी होने नहीं दिया। मैं तड़पती रही, क्योंकि मैं आपको आत्मा की गहरार्इ तक प्यार करती थी। ये प्यार कभी खत्म नहीं हो सकता चाहे वक्त हमारी कितनी ही परीक्षा ले-ले,परिवार वाले कितना भी कोशिश करे हमें अलग करने की। आत्मा का मिलन जब हो गया तो कभी जुदा नहीं होगा।
                बचपन में दिये गए संस्कार, वो रामायण-महाभारत की कहानियां इन्सान कभी नहीं भुलता, ठिक उसी तरह मैं भी नही चाहती थी कि हमारी वजह से हमारे उन माता-पिता परिवार वालों को हमारी तरफ से कोर्इ तकलीफ हो। जिन्हे भगवान ने पहले से हमारे जिन्दगी का हिस्सा बना रखा है। हमारे माता पिता को कभी हमारे कारण शर्मिन्दगी का सामना करना पड़े या उनकी पद और प्रतिष्ठा को कभी नीची नजरों से देखा जाए। इतना सब करके भी हमारी इच्छाएं, अभिलाषाएं क्यों हमें दबानी पड़ी। शायद इसीलिए कि आप कभी उतने निडर नही बन पाये कि कभी तो ऐसा वक्त हो जब हम साथ हो, अकेले हाथों में हाथ डालकर बात करे। मेरा नारी मन कर्इ बार ऐसे वक्त को पुकारता रहा, लेकिन इसे मैं आपका संतुलन कहूं या आपकी कायरता, मुझे नहीं मालूम। मै इतना जरूर जानती हूं कि पिछले पांच सालों में आप कभी मेरे नारीत्व को सन्तुष्ट नही कर पायें। मैं मन ही मन घुलती रही और सोचती रही कि ये तो श्याम की मीरा बनने से भी बड़ी तपस्या है, जिसका कोर्इ अंन्त ही नही होता। आप हमेशा अपने परिवार कैरियर के लिए कर्तव्यपरायण रहे और मैं अपने परिवार कैरियर के लिए। हम दोनों हमेशा एक दूसरे की घर-गृहस्ती की छोटी-मोटी कठिनाइयां यूं ही दोस्त बनकर निबटाते रहे। पर अब लगने लगा कि ये एक अगिन परीक्षा है। मैं तो देवी नहीं हूं पर आप शायद देवता हो, जो हरदम अपनी सीमाओं में रहते हो। मेरी इच्छाएं भावनाएं एक इन्सान ही की है, जो सीमा से परे है। पिछले कुछ दिनों से हमारी बहस का नतीजा है कि मैने सोचा, बेहतर है कि हम अलग रहे। मानसिक तौर पर जुड़ने के बाद कभी-कभी तन भी इच्छाएं प्रकट करता है। जब दिल किसी को बेइंतहां प्यार करता है तो तन उससे अलग कैसे रह सकता है वो भी इतने अन्तराल तक। कभी लगता है, इतने दिनों तक या तो आपकी भावनाएं, आपका प्यार मेरे लिए दिखावा थी या फिर आप खुदगर्ज हो, जो सिर्फ अपनी खुशी, अपनी सन्तुषिट पद-प्रतिष्ठा को ज्यादा तवज्जो देते हो बजाय कि मेरी भावनाओं की कद्र करने के। आपको नहीं मालूम जब एक नारी किसी को तहेदिल से प्यार करती है तो वह पुरी तरह आत्मसमर्पित होती है और आत्मसर्मपण की भावनाओं को क्या हम मसल डालते है।

मैने कभी नही चाही कि आपको दुख दूं या हमारी वजह से आपको किसी प्रकार का दुख हो। मैं तो हमेशा आपको एक आदर्श पति जैसा ख्याल रखा। मैं सदा डरती रही की मेरी कोर्इ भी बात आपको आहत कर दे। लेकिन आपने उन दिनों जितना मुझे आहत किया, वह तो एकदम क्रुरता है, धोखा है। आपने कहा कि तुम्हारे जीवन में सबसे पहले जो जगह है वो मेरी नही हैं। फिर ये सब क्या थाघ् मैं तो अपने दिल मे सबसे पहले आपको बसायी थी तथा अपना सबकुछ मान बैठी थी। मेरे जीवन में आपके बाद ही कोर्इ होगा। इतने सालों तक मेरी सार्पित भावनाओ से खेला आपने। आपने मुझे उस प्यार का एहसास कराया, जो सचमुच भगवान से मिलने जैसा था। क्या कोर्इ किसी को इस तरह अन्दर से तोड़ देता है क्या किसी नारी को प्यार पाने का अधिकार नही है मैं किस तरह से टूट-टूट कर जीती थी शायद आपको पता नहीं। बहुत प्यार किया है मैने आपसे। इस तरह तिल-तिल कर कैसे जलती रही हूं जिन्दगी भर। एक मृग की तरह कस्तुरी पाने के लिए तड़प रही थी। मुझे आशा रहती है कि कभी मेरा प्यार मुझे मिलेगा। शायद मेरी ही गलती थी, जो आपको समझ नहीं सकी। मेरा मन जो एक मृग मरीचिका के पीछे भाग रहा था। एक मृगतृष्णा ही थी यह, पर क्या सच्चे प्यार की यही नियति है।
मैने कभी नही चाही कि आपके माता पिता या मेरे माता पिता को मेरे कारण किसी प्रकार की तकलीफ हो या उनकी भावनाएं आहत हो, इसलिए चुपके से मैने अपनी भावनाओं को सीमा में रखना स्वीकार लिया। मेरी स्लीम, कोमल, जवान शरीर रूप की सुन्दरता के कर्इ प्रसंसक मेरे आगे-पीछे घुमते रहते थे पर पता नहीं क्यों सिर्फ आप ही मुझे एक सम्पूर्ण पुरूष नजर आए। जिसकी मानसिकता,समझदारी व्यकितत्व पूर्ण परिपक्व नजर आर्इ। आज मुझे लग रहा है कि मैं अपने ही आथों छली गर्इ। मैं यह समझ नही पार्इ कि आपकी परिपक्वता इन्सानी परिपक्वता से कुछ उपर है। जो मेरी भावनाओ से भी इन्सानी भावना से परे होने की अपेक्षा रखता है। हम दोनों की समाज रिश्तेदारियों के बीच में एक सम्मानित छवि है। आप एक मशहुर कवि पत्रकार तथा एक प्राइवेट कम्पनी मे सफल आफिसर के साथ साथ एक अच्छे दोस्त बेहतर इन्सान के रूप में जाने जाते है, और मैं अपनी सुन्दरता, सादगी एक होनहार छात्रा के रूप मे पहचानी जाती थी। किसी को कैसे बताऊं कि हरदम बेहद आत्मविश्वास से भरी रहने वाली ये राधा कितनी टूट चूकी है। आपके एक ही वाक्य ने मेरे जीवन में उथल पुथल मचा दी थी। एक जिंदा लाश बना दिया था आपने मुझे, इसका जिम्मेदार मैं कैसे समझू आपको, अपने आपको या मेरी मृगतृष्णा को।
स्कूल के दिनों में पहले जब सहेलियां एक दूसरे से पूछती कि तुम्हे कैसा लड़का चाहिए तब मैं एक ही बात कहती थी कि जिसकी आंखे सुन्दर हो, आवाज मीठी हो, सभी की भावनाओं का कद्र करने वाला हो। कोर्इ पुछती स्वभाव अच्छा नही हुआ तो क्या करोगी? मैं बहुत आत्मविश्वासी थी। आपका स्वभाव व्यवहार देखकर मैं सोचती थी कि शायद ही कोर्इ आप जैसा पुरूष होगा जो इतना प्यार किसी को देता होगा। मैं कह देती थी की जब उसका स्वभाव अच्छा नही रहेगा तो मैं अपने प्यार स्वभाव से उसे बदल लूंगी। उस समय मन ही मन आपको अपना पति मान बैठी थी। आपके दोस्तों मेरी सहेलियों द्वारा व्यूटी क्वीन से नवाजे जाने के बाद भी मेरी पसंद-नापसंद, सादगी में कोर्इ अन्तर नही आया लेकिन भरतीय परिवेश में बढ़ती हुर्इ लड़कियां मां-बाप की चिन्ता का कारण बन जाती है और मैं तो कभी भी किसी को दुख देना ही नही चाहती थी तो अपने मां-बाप को कैसे देती?
मेरी शादी के लिए मेरे माता-पिता लड़के की तलाश करना शुरू कर दिये थे। मैं नही चाहती थी कि मेरी शादी किसी दूसरे लड़के से हो। क्यों कि आपके शिवा मुझे कोर्इ अच्छा ही नही लगता था। पता नही आपमें कौन सी बात थी जो आप पर मैं अपना सब कुछ अर्पित कर दी थी। मुझे यह भी मालूम था कि आप भी हमें बहुत चाहते है, प्यार करते है पर कभी आपने इजहार नही कर पाये। आपकी नजरे तथा गतिविधियां, व्यवहार मुझे आपके प्यार का एहसास कराती रहती थी। मैं अपनी शादी का विरोध करने लगी कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है। मुझे डर लग रहा था कि वह किस स्वभाव का होगा जिससे मेरी शादी होगी। क्या आप जैसा व्यकितत्व वाला होगा? यह सब सोचकर मैं आपके इन्तजार में शादी नही की तथा अपने माता-पिता के पास ही रहने लगी। किसी लड़की द्वारा शादी से इन्कार करने के बाद लोग क्या-क्या सोचने कहने लगते है। क्या-क्या ताने कसने लगते है सभी जानते है। उस लड़की की उस घर में किस तरह की सिथति बन जाती है। मैं अपने ही घर में उपेक्षित महशुश करने लगी। मेरे परिवार रिश्तेदारों के व्यवहार में पहले जैसा अपनापन नही था। मैं हमेशा कर्तव्यपरायण रही हू अपने परिवार के प्रति। माता-पिता छोटी बहनों का कड़ा व्यवहार का सामना करना मेरी दिनचर्या बन गर्इ थी। चूंकि मैं घर में सबसे बड़ी थी इसलिए छोटे भार्इ-बहनों को सम्भालते, उनका ख्याल रखते तथा घर में एक नौकरानी जैसा काम करते-करते सात साल गुजर गए। वक्त कैसे आगे बढ़ता चला गया पता ही नही चला। इस बीच संघर्ष का दौर भी बहुत कठिन था। पिता का व्यवहार अच्छा नही था। घर के सभी लोग चाहते थे कि मैं केवल सबकी सेंवा करूं घर में रहकर। पर मुझे अपना भविष्य अंधेरे में नजर रही थी। जब कभी अपनी निजी जरूरतों के लिए परिवार वालों से पैसा मांगती थी और नहीं मिलता था तो मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुंचती थी। इसलिए अचानक एक निर्णय लिया कि मैं काम करूंगी अपने भविष्य के लिए। मैं पढ़ी लिखी समझदार लड़की थी। शुरूआत बहुत संघर्षपूर्ण रही। एक तरफ माता-पिता का असहयोग, दूसरी तरफ रिश्तेदारों माता के तानों के बीच पढार्इ के साथ-साथ आपके सहयोग से एक छोटा सा व्यवसाय शुरू किया। दो साल तो व्यवसाय परिवार की जिम्मेदारी निभाते बीत गया लेकिन तीसरे साल मेरी मेहनत एकाग्रता रंग लार्इ और मेरे माता-पिता रिश्तेदार भी मेरा साथ देना शुरू कर दिया।
अब घर में थोड़ी-बहुत मेरी भी सुनी जाने लगी। जीन्दगी की इस कशमश में मैं आपसे भी टकरार्इ और पता ही नही चला कि एक बेहद आत्मविश्वासी, समझदार परिपक्व सी लड़की कब आपको अपना सब कुछ मान बैठी। आपने ही अपने व्यवहार से एहसास कराया कि मेरी जिन्दगी सिर्फ दूसरे के लिए नही है। मेरी एक वजूद है। बहुत प्यार किया आपने मुझे, मेरी हर जरूरतों को आपने पुरा किया तथा मेरी सभी प्रकार समस्याओं का हल निकाला। मेरे इस धरती पर होने का एहसास आप ही ने मुझे कराया, वरना मैं तो जिए जा रही थी सिर्फ अपने कत्र्तव्यों को पूरा करने के लिए। मैंने कभी अपने बारे में सोचा ही नही। आप मिले तो लगा कि मेरी भी अपनी इच्छाएं है। मैं भी इन्सान हू। और समय पंख लगाकर उड़ता गया। मेरी गृहस्ती का सफर, मेरा व्यवसाय आपका प्यार साथ-साथ सब कुछ चलते चले गये, एक दूसरे का साथ निभाते हुए। पर ये प्यार सिर्फ मन तक ही सीमित रहा। जिंदा लाश तो आप मुझे बना ही चूके थे, पर अब आप मुझसे देवता बनने की उम्मीद क्यों करने लगे? आप कहते थे कि दिल का मिलना ही काफी है। दिल से आगे मिलने के लिए आप इन्तजार करवाते रहे। मैं भी आपके प्यार मे डूबी इन्तजार करती रही। पर इस बार मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैंने आपको गुस्से में आकर एक दिन कह दिया कि आप ''शी-मेल'' हो। आपने मुझसे भी गुस्से में जो कहा उससे मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी। मेरे सपने चूर-चूर हो गए, ऐसा लगा कि आपने मुझमें प्राण डालकर एकदम से निकाल लिए हो। मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि जो मुझे जिन्दगी का अर्थ समझाएगा, मेरी आत्मा जिसमें बस जाएगी वही मेरे साथ ऐसा करेगा। पता नहीं किसे दोष दूं। आपको या भगवान को। भगवान को भी क्या जरूरत थी मेरी जिन्दगी में रंग भरने की और रंग भरने ही थे तो फिर से उन्हे छीन क्यों लिया। आप तो अपने आफिस में सैकड़ों लोगों से मिलते सभी लोगों की समष्याओं का सामाधान करते हो तथा कविता पाठ करने, लिखने मे व्यस्त रहते हो। कर्इ बार बिना कुछ खाए-पीए घंटों ही दूसरे लोगों के लिए बाहर चले जाते हो। मगर मेरे बारे में क्या कभी सोचा कि मैं किस तरह कैद में जी रही हूं। हम आपकी अब भी उतना ही ख्याल रखते है जितना पहले जब आप मेरे पास थे। अभी भी आपका प्यार पाने की आस लगाये इन्तजार कर रही हूं। जो शायद कभी मिल जाए। मेरे जीवन में वास्तविक खुशी आनन्द का अनुभव तभी होगा जब आप हमेशा के लिए मेरे हो जाऐगें। आप हमारी यादों में हमेशा परछार्इ की तरह रहेगें। यह सब सोचते-सोचते कब वह गहरी नींद में चली गर्इ कुछ पता ही नहीं चला।

                                                        जय सिंह
                              विशुनपुरवां,कूड़ाघाट,गोरखपुर