शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

समय .......

कहा जाता है की समय रुकता नहीं है, अपनी चाल से चलता रहता है और न जाने कितनी यादें अपने में समेटते हुए चला जाता है ।
जीवन को समय ने आज कहा से कहा ला दिया है, फुरसत समय में सब याद आने लगता है ।
समय को देखिये और अपने बीते हुए जीवन को महसुस करिए .....

- पांचवी तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे।

- स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी, लेकिन इसमें पाप बोध भी था, कि कहीं विद्या माता नाराज न हो जायें ।

-पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था ।

-स्कूल में टाट पट्टी की अनुपलब्धता में घर से बोरी का टुकड़ा बगल में दबा कर ले जाना भी हमारी दिनचर्या थी ।

- पुस्तक के बीच विद्या, पौधे की पत्ती और मोर पंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे, ऐसा हमारा दृढ विश्वास था । 

- कक्षा छः में पहली दफा हमने अंग्रेजी का ऐल्फाबेट पढ़ा और पहली बार एबीसीडी देखी ।

- यह बात अलग है बढ़िया स्मॉल लेटर बनाना हमें बारहवीं तक भी न आया था ।

- कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था ।

- हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था ।

- माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी,  न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी । सालों साल बीत जाते पर माता-पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे ।   

- एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं,  यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं ।   

- स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था,  दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है।

- पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी, पीटने वाला और पिटने वाला दोनो खुश थे, पिटने वाला इसलिए कि कम पिटे,  पीटने वाला इसलिए खुश कि हाथ साफ़ हुआ ।

- हम अपने माता-पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं क्योंकि हमें आई लव यू कहना नहीं आता था ।

- आज हम गिरते . सम्भलते,  संघर्ष करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं,  कुछ मंजिल पा गये हैं तो कुछ न जाने कहां खो गए हैं ।

- हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन यह सच है,  हमे हकीकतों ने पाला है,  हम सच की दुनियां में थे ।

- कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना और रिश्तों को औपचारिकता से बनाए रखना हमें कभी नहीं आया इस मामले में हम सदा मूरख ही रहे ।

- अपना-अपना प्रारब्ध झेलते हुए हम आज भी ख्वाब बुन रहे हैं,  शायद ख्वाब बुनना ही हमें जिन्दा रखे है, वरना जो जीवन हम जीकर आये हैं उसके सामने यह वर्तमान कुछ भी नहीं ।

- हम अच्छे थे या बुरे थे, पर हम एक समय थे, काश वो समय फिर लौट आए ।
  बस यूं ही

 जनता कर्फ़्यू में फ़ुरसत के पल कुछ जीवन की कड़वी सच्चाई दिल से निकल ही गई । क्योंकि समय था ।


आपका 
जय सिंह 

विशेष लेख -- इच्छाओं का अंत कहां.....


जीवन की पहली बुनियादी बात है, अगर आप अपने जीवन में शांति और आनंद पाना चाहते हैं तो, दो बातों से जरूर बचें I पहली आकांक्षाओं का मकड़जाल और दूसरी व्यर्थ की कल्पना।
अगर आपके भीतर चिंता का भूत सवार है, तनाव, अवसाद है, घुटन है, विफलता के कारण कुछ कर नहीं पा रहें है I तो इसका मूल कारण है, व्यर्थ की कल्पनाएं और अनेको कांक्षाओं का मकड़जाल। एक इच्छा को पूरी कर देने से क्या इच्छाएं समाप्त हो जाती है-
जितनी इच्छाएं पूरी करते हैं उतनी ही बढ़ती जाती है। आदमी का अंत हो जाता है लेकिन इच्छाओं का अंत नहीं होता। हमारी इच्छाएं आकाश के समान अनंत है। जैसे आकाश मकान के पार समाप्त होता दिखाई देता है, लेकिन वहां जाकर देखने से वह फिर उतना ही दूर हो जाता जितना पहले था। वैसे ही जीवन में इच्छाएं चाहे जितनी पूरी करते जाएं फिर भी वह पकड़ से बाहर रहती है।
ये भी पा लूं, वही भी बटोर लूं, और बटोरते-बटोरते घर में कितना संग्रह करते जा रहे है। कभी घर में देखा है आपने कितना कूड़ा करकट इकठ्ठा कर रखा है। खाली डिब्बे काम के न थे पर रख लिए कि भविष्य में कभी काम आंऐंगे।
ये चीज काम की नहीं है, पर अभी रख लूं भविष्य में काम आएगी। हम घरों में पचास प्रतिशत सामान ऐसा रखते है जिनका उपयोग छह महीनों में कभी नहीं करते। बेवजह का संग्रह। जो लोग बेवजह संग्रह करते है वे जीवन भर तो संग्रह करते ही है मृत्यु के कगार पर पहुंचकर उनके प्राण इसी संग्रह में अटक जाते है।
व्यक्ति जीवन में केवल आवश्यकताओं की पूर्ति करे। आपकी आवश्यकता बीस साडि़यों की है लेकिन आकांक्षा पचास साडि़यों की है। पूरूष लोग ही एक छोटा सा नियम ले ले कि वे एक ही रंग के कपड़े पहनेंगें जैसे कि केवल सफेद।
अब हमें देखिए हमारा नियम है श्वेत कपड़े पहनने का अब कितना संग्रह करेंगे। जब आपका भी नियम होगा तो कितने वस्त्र इकट्ठे करेंगे एक रंग के, लरेगरें में रंग का भी राग है। कपड़े सब कपड़े है, पर रंगों का फर्क है। महिलाएं बेहिसाब साड़ियां इकट्ठी करती हैं, पर पहन कितनी पाती है। एक बार में एक ही साड़ी पहनोंगे न, दो तो नहीं पहन पाओगे। रंगों का भी अपना राज है। यह आपके स्वभाव के प्रतीक होते है। किसी को लाल रंग पसंद है, तो किसी को गुलाबी, तो किसी को पीला रंग पसंद होता है। जिसका स्वभाव तेज होता है उसे लाल रंग पसंद होता है। जिसका स्वभाव मीठा होता है, उसे गुलाबी रंग अच्छा लगता है। जिसका स्वभाव खट्टा-मीठा होता है उसे पीला रंग अच्छा लगता है।
जो शांत स्वभाव का होता है उसे सफेद रंग अच्छा लगता है, जिसकी जैसी चित्त की प्रकृति होती है वैसे-वैसे रंग के कपड़े पहनने की कोशिश करता है। व्यक्ति आकांक्षाओं की सीमा बनाएं।
रहने के लिए मकान है, खाने के लिए रोटी है, पहनने के लिए कपड़े है, समाज में इज्जत की जिंदगी है तो विश्राम लो। अपनी आवश्यकतानुसार ही धन कमाओं और बेवजह उलझकर रातों की नींद और दिन का चैन न खोओ।
आपको याद होगा जब डा0 एपीजे अब्दुल कलाम साहब की जायजाद की गिनती की गयी तो पाया गया कि-
6 पैंट जिसमें 2 डीआरडीओ ड्रेस है
4 शर्ट जिसमें 2 डीआरडीओ ड्रेस है
3 सुट में से 1 पश्चिमी और 2 भारतीय
2500 किताबें
1 फ़्लैट जो संशोधन के लिए दान है

1 पदमश्री
1 पदमभूषण
1 भारत रत्न
16 डाक्टरेट
1 बेबसाईट
1 ट्विटर
1 मेल
टीवी, एसी गाड़ी, जेवर, शेयर, जमीन-जायजाद, बैंक-बैलेंस कुछ नहीं I
पीछले आठ सालों से पेंशन की भी रकम अपने गांव की ग्राम पंचायत को दान दे दी।
जिस दिन हमारा निधन होता है, उसी दिन ही सब धन दूसरे का हो जाता है I
हमारा पैसा बैंक में ही रह जाता है। जब हम जिन्दा रहते है, तो हमें लगता है कि हमारे पास खर्च करने को प्रयाप्त धन नही है। जब हम चले जाते है तो तब भी बहुत सा धन बिना खर्च हुये बच जाता है।
एक चीनी बादशाह की मौत हुई तो वो अपनी विधवा के लिये बैक में 1.9 मिलियन डालर छोड़ कर गया। विधवा ने जवान नौकर से शादी कर ली। उस नौकर ने कहा, मै हमेशा सोचता था, कि मै अपने मालिक के लिये काम करता हू I अब समझ में आया कि वो हमेशा मेरे लिये काम करता था।

सीख-
ज्यादा जरूरी है कि अधिक धन अर्जन के बजाय अधिक जिया जाय I
अच्छे स्वास्थ्य और शरीर के लिए प्रयास करिये I
महंगे फोन के 70 प्रतिशत फंक्शन अनुपयोगी रहते है I
महंगी कार की 70 प्रतिशत गति का उपयोग नही हो पाता है I
आलिशान मकानों का 70 प्रतिशत हिस्सा खाली रहता है I
पुरी आलमारी के 70 प्रतिशत कपड़े पड़े रहते है, जिसका उपयोग पुरी लाईफ मे नही हो पाती है।
पुरी जिन्दगी की कमाई का 70 प्रतिशत दूसरों के उपयोग के लिए छूट जाता है I

70 प्रतिशत गुणों का उपयोग नही हो पाता तो 30 प्रतिशत का उपयोग कैसे हो-
स्वस्थ्य होने पर भी अपना निरंतर चेकप कराते रहें
प्यासे न होने पर भी अधिक पानी पियें
जब भी संभव हो अपना अहं त्यागें
शक्तिशाली होने पर भी सरल रहें
धनी न होने पर भी परिपूर्ण रहे और बेहतर जीवन जीये।
 आपका 

जय सिंह 
युवा कवि,लेखक, कहानीकार,ब्यंग्कार, गीतकार