मंगलवार, 3 नवंबर 2015

आरक्षण पर बवाल क्यों ?


० जय सिंह ०

आज चारो तरफ आरक्षण का विरोध सभी प्रमुुख समाचार पत्र की सुर्खियों में हैै। ऐसा लगता है जैसे भारत की रोटीकपड़ामकान,शिक्षास्वास्थ्यमानवीय अधिकार और अपराध जैसी सभी समस्याओ ंका हल हो चुका हैऔर जो समस्याएं बची है उन सभी की जड आरक्षण ही है और आरक्षण खत्म हो गया तो शायद भारत की सभी समस्याएं खत्म हो जायेगी और भारत दुनिया की सबसे बडी महाशक्ति बन जायेगा।
आरक्षण पर चर्चा करने से पहले सामाजिक न्याय के सिद्वान्त को समझना अत्यन्त आवश्यक है। अवकाश प्राप्त जस्टिस के0 सुब्बाराव के अनुसार ‘‘सीमित रूप में सामाजिक न्याय का अधिकार कमजोरोंबृद्वांेनिराश्रितोंनिर्धनोंस्त्रियोंबच्चों, तथा अन्य शोषित और पीडि़त व्यक्तियों के अधिकार के रूप में परिभषित किया जाता हैजो जीवन की निष्ठुर प्रतियोगिता के खिलाफ राज्य के संरक्षण का अधिकार है। यह अधिकारों से वंचित लोगों का सहारा मात्र है ताकि उन्हे जीवन की दोैड़ में उन्नत लोगों के साथ समान अवसर मिल सके। यह अधिकारों की ऐसी पोटली है जो एक ओर तो दूसरे के अधिकारों से तरास कर बनाई गई हैऔर दूसरी ओर यह दूसरे के अधिकारों की रक्षक है। यह सम्पन्न और निर्धनों के बीच एक सन्तुलनकारी चक्र है।‘‘
आरक्षण के सम्बन्ध में बहुत से अनावश्यक प्रश्न समाज के पढे-लिखे लोग करते है। ऐसा लगता है कि मानसिक रूप से बीमार होने के कारण ऐसा आक्रोश खड़ा करते हैजिससे कि बाबा साहेब डा0 भीमराव अम्बेडकर की देन सामाजिक न्याय से बडा दुश्मन उनके लिये कोई है ही नही। हम किसी की मानसिकता या नीयत नही बदल सकते । परन्तु यह बताना चाहते है कि सभ्य देश का सभ्य समाज विचारों से और तर्क से चलता है। विरोधआक्रोशएवं अलोकतात्रिक अपराधिक गतिविधिया सभ्य समाज को दिशा नही दे सकते। हम उन भ्रान्तियों को दूर करना चाहते है।
सबसे पहले सवर्ण समाज के लोग यह समझ ले कि असली आरक्षण वह आरक्षण है जो यह व्यवस्था बनाता है कि मंदिर में ब्राम्हण ही पुजारी होगा। युद्व में क्षत्रिय ही लडेगा। सेना में क्षत्रिय ही भर्ती होगा। शूद्र ही सेवा करेगा। शूद्र के अलोवा कोई सेवा नही करेगा। यह आरक्षण शत प्रतिशत था। मंदिर का पुजारी आज भी ब्राम्हण के अलावा और कोई नहीं हो सकता चाहे वह कितना भी बड़ा संस्कृत भाषा का विद्वान क्यों न हो। ब्राम्हण ही ब्राम्हण का दामाद या ब्राम्हण ही बहू आज भी ब्राम्हण ही हो सकती है।
भारतीय संविधान में आरक्षण संरक्षण की हद तक ही प्रदत्त है। 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोग आई00एस0 होंगे तो 85 प्रतिशत तो अन्य के लिये शेष है। भारतीय संस्कृति के आरक्षण में तो आज भी ताला बन्द है। उसे खोलने के लिये कितने आन्दोलन किये गये?  या अपनी मर्जी से वर्ण व्यवस्था को खत्म करने हेतु तथाकथित लाभन्वित पुरोहित समाज ने कोई घोषणा-पत्र तैयार किया ?जिसमें इस आरक्षण को समाप्त करने का निर्णय लिया गया हो या प्रयास किया गया हो। क्या इस सांस्कृतिक आरक्षण में से किसी परीक्षा के आधार पर ब्राम्हण जाति एक भी प्रतिशत हिस्सा किसी अन्य को मेरिट के आधार  पर देने को तैयार है ?
आज के भारतीय संविधान में प्रदत्त संरक्षणों का विरोध करने वाले पहले अपने शत प्रतिशत आरक्षण में से कुछ प्रतिशत छोड़ कर दिखायें तब दलितशोषित और पिछड़े भी मानें कि आपको भारत की चिंता हैभारत के भविष्य के लिये मेरिट की चिंता है। तुम तो शत प्रतिशत आरक्षण लो और दलितशोषित और पिछड़ों के संरक्षण से भी तुम्हे घृणा है। फिर लोकतंत्र में अकेले मेरिट की चिंता करने का अधिकार 15 प्रतिशत लोगों को भी नही है। यह अधिकार तो अन्य शेष 85 प्रतिशत को भी है। देश के ठेकेदार अकेले 15प्रतिशत लोग नही है। देश में हम भी है आप भी है। प्रगति होगी तो साथ-साथदुर्गति होगी तो साथ-साथ। अकेले ही आपको देश की सारी चिंता क्यों है?
आरक्षण ने राष्ट्ªवाद को बढाने का आधार दिया है। समानता स्थापित करने का अभियान छेड़ा है। अंर्तजातीयअंतधार्मिकअंतर राज्यीय विवाहों की संख्या बढ़ी हैजिससे भविष्य में बंधुता और प्रेम बढेगा। जन-जन में हिस्सेदारी का अहसास बढा है। लोकतंत्र मजबुत हुआ है। सामाजिकआर्थिक न्याय की प्रक्रियाराजनैतिक न्याय की प्रक्रिया आगे बढ़ी है। कमजोरोंअसहायोंपिछड़ोंगरीबोंअल्पविकसित,अनुसूचित जातियोंजन जातियों का कानूनशान्ति व्यवस्था और भारतीय एकता तथा अखण्डता में विश्वास बढ़ा है। आरक्षण कोई भीख नही है जो दलितोंपिछडों को दी जा रही है। आरक्षण कोई आर्शीवाददयाया अहसान भी नही है। यह मात्र सामाजिक समरसता व बराबरी पर लाने का सरकारी साधन है। हर आदमी तक अवसरांे की समानता पहुचें इसे सुनिश्चित करने की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है।
भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेदों का जिक्र मै करना चाहूंगा। अनु0 15 धर्ममूलवंश जातिलिंगजन्म स्थान या उनमें से किसी के आधार पर विभेद नही करेगा परन्तु अनु0 15 (4) के अनुसार राज्य को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछडे़ हुये नागरिकों के किन्ही वर्गो की उन्नति के लिये या अनूसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये विशेष उपबंध करने का अधिकार होगा।
 सवर्णों की दलील रही है कि आयकर दाताओंअधिकारियोंनेताओं के बच्चों को आरक्षण नही मिलना चाहिए। यह एक षडयन्त्र है। जो आरक्षण प्राप्त करने वाली जातियों के लोगों को आपस में लड़ाने के लिये है ताकि जो नेतृत्व उभर कर आ रहा है वह दलितों और पिछड़ों से अलग हो जाये और उनके बच्चे आपस में लड़ना शुरू कर दे। क्रीमीलेयर कान्सेप्ट आर्थिक स्थिति को लेकर हैजबकि आरक्षण एक सामाजिक समस्या ‘‘जातिवाद‘‘ का हल है। भारत के दलित राष्ट्रपति का बेटा भी उतने ही अछूत है जितने कि साधारण सफाई कर्मचारी के बच्चे। दोनो जब अपने गांव जायेगे तो उनकी पहचान बिरादरी के नाम से ही होती हैन कि उनके या उनके मांॅ-बाप के पद से। उसके अलावा जब नौकरी में आने के बाद लोग सोचेगे कि अब हम और हमारे बच्चे समाज से अलग हो गये है तो आरक्षण का दर्शन ही ध्वस्त हो जायेगा। आरक्षण के दर्शन का मतलब है कि आरक्षण के कारण किसी पद पर बैठने वाला व्यक्ति अपने लोगों को शक्ति और सत्ता के गलियारे में हिस्सेदारी का अहसास दिलाये। आरक्षण जातिवाद को खत्म करने के लिये दिया गया है। जातिवाद एक सामाजिक समस्या है। ठीक वैसे ही जैसे कि दांत का इलाज आंख का डाक्टर ठीक से नही कर सकता। आर्थिक आधार पर आरक्षण सामाजिक समस्या को हल नहीं कर सकता।
आरक्षण विरोधी आरक्षण के विरोध में धरना-प्रदर्शनदंगा-फसाद और संविधान संशोधन की बात रहे हैआत्महत्या कर रहे है। दलित और पिछडे वर्ग के लोगों ने इस बात को लेकर कभी आत्म हत्या नहीं की कि उनकी आज भी सेना में संख्या कम है। आज भी न्यायालयों मे संख्या कम है। आज भी विश्वविघालयों में शिक्षकों के पद पर उनकी संख्या नगण्य है। आज भी उनको मंदिरों में प्रवेश नही करने दिया जाता है। आज भी उनके साथ जातिगत भेदभाव किया जाता है। उनका आदमी बद्रीनाथ हो या द्वारका वहां का पुजारी नियुक्त नही किया जा सकता। सवर्णो की हिम्मत सिर्फ इतने में टूट गई कि कुछ लोगों को उनकी कक्षा में बैठने को मौका मिल रहा है। या जिसके साथ आज तक अन्याय होता रहा अब उसके कम होने की उम्मीद है या समाप्त हो रहा है। वैसे मैं जानता हूुं जब-जब सवर्ण संघर्ष से घबराते है वे ऐसा ही करते है। उन्होने सती जौहर आदि जैसे सिद्वान्त अपनी संस्कृति में पहले से ही डाल रखे है।
आरक्षण विरोधियों से अपील-
आरक्षण के विरोधियों ! अपनी संस्कृति का अध्ययन करो और उस संस्कृति के आड़ में दलितोंपिछड़ों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार को खत्म करो। आरक्षण नही जातिवाद खत्म करो। हड़ताल करने वालेजाति-धर्म पर राजनीति करने वालेदंगा-फसाद कराने वाले लोगों एक-एक महिने की कमाई जमा करके 1 महिने में देश में 20 गुना  व्यवसायिक शिक्षण केन्द्र खोलो। अपने नामगली मोहल्लोंसंस्थाओं से जाति सूचक नामउपनाम हटाओ और इसके लिये कानून बनाने की मांग करो। सरकारी और निजी क्षेत्रों में महिलाओं के 50 प्रतिशत आरक्षण की मांग करो। अनुसूचित जातिअनुसूचित जनजाति अन्य पिछडे वर्गो और अल्पसंख्यकों के बैकलाग भरने के लिये संघर्ष करो।
अन्र्तजातीयअन्तधार्मिक विवाहों को पुरस्कृत करो एवं प्रोत्साहित करो। निजी एवं सरकारी आवासीय कालोनियों और बाजारों में आरक्षण पूरा करो। दलितोंपिछडोंअल्पसंख्यकों का आरक्षण साम्प्रदायिकता कम करेगा। सरकार से मांग करो कि अनुसूचित जातिअनुसूचित जनजाति व अन्य पिछडे वर्ग के लोगोंमहिलाओं और अल्पसंख्यको को सेना और सभी न्यायालयों में आरक्षण दिया जाये। छुआछुत मानने वालों का सामाजिक वहिष्कार करो। दहेज उत्पीड़न करने वालों का समाजिक वहिष्कार करो। ताकि आरक्षण की आवश्यकता ही न रहे। अनुसूचित जातिअनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछडा वर्ग में अभी से क्रीमीलेयर ढूढ़ने वाले सवर्णाें की क्रीमीलेयर तय करें और उन्हे सरकारी सुविधाओंलाभोंसामाजिक सम्मानआर्थिक लाभधार्मिक पदोंपूजा ग्रहों के पदों से वंचित करने के लिए कानुन बनाने की मांग करें। जब सभी जगह बराबरी की भागीदारी सुनिश्चित हो जायेगा तो मेरा मानना है कि आरक्षण की आवश्यकता किसी को नही होगा और न ही कोई किसी का विरोध करेगा।
लेखक-  जय सिंह
वरिष्ठ पत्रकार
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