गुरुवार, 26 अक्तूबर 2017

पेरियार ई. वी. रामास्वामी जी


पेरियार ई. वी. रामास्वामी जी के वचन  

👉 ब्राह्मण आपको भगवान के नाम पर मूर्ख बनाकर अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है और स्वयं आरामदायक जीवन जी रहा है, तुम्हें अछूत कहकर तुम्हारी निंदा करता है. देवता की प्रार्थना करने के लिए दलाली करता है. मैं इस दलाली की निंदा करता हूँ और आपको भी सावधान करता हूँ कि ऐसे ब्राह्मणों का विश्वास मत करो.

👉 उन देवताओं को नष्ट कर दो जो तुम्हें शूद्र कहें, उन पुराणों और  इतिहास को ध्वस्त कर दो, जो देवताओं को शक्ति प्रदान करते हैं. अगर देवता ही हमें निम्न जाति बनाने के लिये जिम्मेदार हैं तो ऐसे देवताओं को नष्ट कर दो, अगर धर्म है तो इसे मत मानो, अगर मनुस्मृति, गीता या अन्य कोई पुराण आदि है तो इसको जलाकर राख कर दो. अगर ये मंदिर, तालाब या त्यौहार है तो इनका बहिष्कार कर दो. अगर हमारी राजनीति ऐसा करती है तो इसका खुले रूप में पर्दाफाश करो. 

👉 संसार का अवलोकन करने पर पता चलता है कि भारत जितने धर्म ओर मत मतान्तर कहीं भी नहीं हैं और यही नहीं, बल्कि इतने धर्मांतरण (धर्म परिवर्तन ) दूसरी जगह कही भी नही हुए हैं. इसका मूल कारण भारतीयों का निरक्षर ओर गुलामी प्रवृति के कारण उनका धार्मिक शोषण करना आसान है. 

👉 आर्यो ने हमारे ऊपर अपना धर्म थोपकर, असंगत, निर्थक और अविश्वनीय बातों में हमें फांसा. अब हमें इन्हें छोड़कर ऐसा धर्म ग्रहण कर लेना चाहिए जो मानवता की भलाई में सहायक सिद्ध हो.

👉 ब्राहमणों ने हमें शास्त्रों ओर पुराणों की सहायता से गुलाम बनाया है और अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मंदिर, ईश्वर और देवी-देवताओं की रचना की.

👉 सभी मनुष्य समान रूप से पैदा हुए हैं, तो फिर अकेले ब्राह्मण ऊँच व अन्यों को नीच कैसे ठहराया जा सकता है.

👉 संसार के सभी धर्म अच्छे समाज की रचना के लिए बताए जाते है, परन्तु हिंदू-आर्य, वैदिक धर्म में हम यह अंतर पाते हैं कि यह धर्म एकता और मैत्री के लिए नहीं है.

👉 ऊँची-ऊँची लाटें किसने बनवाईं ? मंदिर किसने बनाए ? क्या ब्राहमणों ने इन मंदिरों, तालाबों या अन्य परोपकारी संस्थाओं के लिए एक रुपया भी दान दिया ?

👉 ब्राह्मणों ने अपना पेट भरने हेतु अस्तित्व, गुण, कार्य, ज्ञान और शक्ति के बिना ही देवताओं की रचना करके और स्वयभू भूदेवता बनकर हंसी मजाक का विषय बना दिया है.

👉 सभी मानव एक हैं, हमें भेदभाव रहित समाज चाहिए, हम किसी को प्रचलित सामाजिक भेदभाव के कारण अलग नहीं कर सकते.

👉 हमारे देश को वास्तविक आजादी तभी मिली समझाना चाहिए, जब ग्रामीण लोग, देवता, अधर्म, जाति और अंधविश्वास से छुटकारा पा जायेंगे.

👉 आज विदेशी लोग दूसरे ग्रहों पर सन्देश और अंतरिक्षयान भेज रहे है. हम ब्राह्मणों के द्वारा श्राद्धो द्वारा परलोक में बसे अपने पूर्वजों को चावल ओर खीर भेज रहे हैं. क्या ये बुद्धिमानी है ?

👉 ब्राह्मणों से मेरी यह विनती है कि अगर आप हमारे साथ मिलकर नहीं रहना चाहते तो आप भले ही जहन्नुम में जाऐं, परन्तु कम से कम हमारी एकता के रास्ते में मुसीबतें खड़ी न करें. 

👉 ब्राह्मण सदैव ही उच्च एवं श्रेष्ट बने रहने का दावा कैसे कर सकता है ? समय बदल गया है, उन्हें नीचे आना होगा, तभी वे आदर से रह पायेंगे नहीं तो एक दिन उन्हें बलपूर्वक और देशाचार के अनुसार ठीक होना होगा.



पेरियार की मूर्तियों के नीचे लिखा था-

1977 की बात है, मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका आई जिसमें कहा गया था कि तमिलनाडु में पेरियार की मूर्तियों के नीचे जो बातें लिखी हुई हैं, वे आपत्तिजनक हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं इसलिए उन्हें हटाया जाना चाहिए।
 याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ईरोड वेंकट रामास्वामी पेरियार जो कहते थे, उस पर विश्वास रखते थे इसलिए उन के शब्दों को उन की मूर्तियों के पैडेस्टर पर लिखवाना गलत नहीं है।

पेरियार की मूर्तियों के नीचे लिखा था- 

‘ईश्वर नहीं है और ईश्वर बिलकुल नहीं है।

जिसने ईश्वर को रचा वह बेवकूफ है, 

जो ईश्वर का प्रचार करता है वह दुष्ट है 

जो ईश्वर की पूजा करता है वह बर्बर है।



ग्रेट पेरियार नायकर के ईश्वर से सवाल 

1. क्या तुम कायर हो जो हमेशा छिपे रहते हो, कभी किसी के सामने नहीं आते ? 
2. क्या तुम खुशामद परस्त हो जो लोगों से दिन रात पूजा, अर्चना करवाते हो ? 
3. क्या तुम हमेशा भूखे रहते हो जो लोगों से मिठाई, दूध, घी आदि लेते रहते हो ?
4. क्या तुम मांसाहारी हो जो लोगों से निर्बल पशुओं की बलि मांगते हो ?
5. क्या तुम सोने के व्यापारी हो जो मंदिरों में लाखों टन सोना दबाये बैठे हो ? 
6. क्या तुम व्यभिचारी हो जो मंदिरों में देवदासियां रखते हो ? 
7. क्या तुम कमजोर हो जो हर रोज होने वाले बलात्कारों को नही रोक पाते ? 
8. क्या तुम मूर्ख हो जो विश्व के देशों में गरीबी-भुखमरी होते हुए भी अरबों रुपयों का अन्न, दूध,घी, तेल बिना खाए ही नदी नालों में बहा देते हो ? 
9. क्या तुम बहरे हो जो बेवजह मरते हुए आदमी, बलात्कार होती हुयी मासूमों की आवाज नहीं सुन पाते? 
10. क्या तुम अंधे हो जो रोज अपराध होते हुए नहीं देख पाते ? 
11. क्या तुम आतंकवादियों से मिले हुए हो जो रोज धर्म के नाम पर लाखों लोगों को मरवाते रहते हो? 
12. क्या तुम आतंकवादी हो जो ये चाहते हो कि लोग तुमसे डरकर रहें ? 
13. क्या तुम गूंगे हो जो एक शब्द नहीं बोल पाते लेकिन करोड़ों लोग तुमसे लाखों सवाल पूछते हैं ?
14. क्या तुम भ्रष्टाचारी हो जो गरीबों को कभी कुछ नहीं देते जबकि गरीब पशुवत काम करके कमाये गये पैसे का कतरा-कतरा तुम्हारे ऊपर न्यौछावर कर देते हैं ? 
15. क्या तुम मुर्ख हो कि हम जैसे नास्तिकों को पैदा किया जो तुम्हे खरी खोटी सुनाते रहते हैं और तुम्हारे अस्तित्व को ही नकारते हैं ?




कोई भी मूर्ख अपने आप को आसानी से आस्तिक कह सकता है, 
क्योंकि ईश्वर का अस्तित्व स्वीकार करने के लिये किसी बुध्दिमत्ता की आवश्यकता नहीं पड़ती। लेकिन नास्तिकता के लिये साहस, तर्क और बुध्दि की जरुरत पड़ती है, इसलिये यह स्थिति उन्हीँ लोगो के लिये सम्भव  है जिनके पास तर्क, बुध्दि और मानसिक मनोबल की शक्ति हो।  
नास्तिक वही हो सकता है जिसके पास  साहस, आत्मविश्वास, बुध्दि और तर्कशक्ति हो.  
नास्तिकता ही सत्य की स्थति है और आस्तिकता भ्रम की स्थति है. 
ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं है.  यही सत्य है ---- पेरियार रामास्वामी जी



17 सितंबर  ई.वी. रामास्वामी नाइकर (पेरियार)  जयंती 

 पेरियार एक तमिल शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘द ग्रेट मैन’ यानि महान व्यक्ति. ई.वी. रामासमी को यह उपाधी वहां के शूद्रों एवं अस्पृश्य समाज के लोगों ने उनके आंदोलन से प्रभावित होकर दी थी. उत्तर भारत के लोगों का साक्षात्कार पेरियार से पहली बार 1968 में ललई सिंह यादव द्वारा लिखी गई ‘सच्ची रामायण’ की चाभी से होता है. ललई सिंह यादव द्वारा यह पुस्तक लिखने पर काफी विवाद हुआ और हाईकोर्ट में मुकदमा तक चला. इस मुकदमे को ललई सिंह यादव ने जीता और इस तरह उसके बाद पुस्तक से प्रतिबंध हटा. यहां तक की हाईकोर्ट ने सरकार को ललई सिंह यादव को हर्जाना देने के लिए भी कहा. तद्उपरांत 1978 के पश्चात मान्यवर कांशीराम ने उत्तर भारतीयों को ही नहीं ई.वी. रामासमी पेरियार को बामसेफ के माध्यम से एक समाज सुधारक के रूप में बहुजन समाज (अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति एवं कंनवर्टेड माइनॉरिटी) के बीच में स्थापित किया. अपनी भोली भाली सामान्य जनता को समझाने के लिए मान्यवर उनको ‘दाढ़ी वाला बाबा’ कह कर बुलाते थे. पेरियार मान्यवर कांशीराम द्वारा स्थापित पांच समाज सुधारकों यथा, नारायणा गुरु, जोतिबा फुले, छत्रपति शाहूजी महाराज, ई.वी.रामासमी नाइकर पेरियार एवं बाबासाहेब अंबेडकर में से एक थे.

 मान्यवर ने 1980 में अपनी मासिक अंग्रेजी पत्रिका अप्रेस्ड इंडियन के एक पूरे अंक को यह कह कर पेरियार को समर्पित किया कि उन्होंने अपना सारा जीवन सेल्फ रेस्पेक्ट मूवमेंट के लिए लगाया था. पत्रिका का कवर भी पेरियार की तस्वीर का था. पेरियार का सामाजिक एवं राजनैतिक चिंतन बहुजन समाज के लिए क्यों आवश्यक है, और उसकी जड़ें कहां से आती है, यह सब बहुजन आंदोलनकारियों का जानना आवश्यक है. बहुजन आंदोलन के लिए यह आज भी उतना ही जरूरी है जितना कल था. पेरियार के राजनैतिक एवं सामाजिक चिंतन की नींव गैर ब्राह्मणवाद एवं गैर कांग्रेसी सोच से विकसित हुई है. अपने बचपन से ही पेरियार ब्राह्मणवाद का शिकार रहे. उन्हें उनके सवर्ण समाज के शिक्षक के घर में गिलास से मुंह लगाकर पानी पीने की मनाही थी. और अगर वह किसी गैर जाति के बच्चे के साथ खेलते थे तो बालक पेरियार को अपने घर में मार पड़ती थी. इन सब चीजों से तंग आकर पेरियार बचपन में ही वाराणसी भाग गए. परंतु वहां जाकर उन्हें ब्राह्मणवाद के विभत्स रूप का पुनः अवलोकन करना पड़ा. बालक पेरियार ने जब अपनी भूख मिटाने के लिए वाराणसी की एक गली में पुण्य कमाने हेतु चलने वाले निःशुल्क भोजनालय में जब भोजन करने का प्रयास किया तो वहां के दरबान ने उन्हें यह कह कर भगा दिया कि यह भोजनालय केवल ब्राह्मणों के लिए ही हैं. और तब भूखे बालक पेरियार को पेट भरने के लिए जूठी पत्तलों से खाना खाना पड़ा और इसके लिए भी उन्हें पत्तलों के पास मंडराते हुए कुत्तों से युद्ध करना पड़ा. यह सब घटनाएं बालक पेरियार के कोमल ह्रदय पर गहरा असर कर गई. 

 अपने जवानी के दिनों में सन् 1924 में जब पेरियार तमिलनाडु कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो उन्हें कांग्रेसी ब्राह्मणों के ब्राह्मणवाद ने और दुखी किया. यहां 1924 में केरला के वैक्यूम सत्याग्रह का जिक्र करना आवश्यक है. क्योंकि इस सत्याग्रह के मार्ग में उन्हें मोहनदास करमचंद गांधी एवं ब्राह्मण कांग्रेसियों से सीधे-सीधे जुझना पड़ा. याद रहे कि 1924 का वैक्यूम सत्याग्रह शूद्रों एवं अछूत जातियों के वैक्यूम में बने मंदिर के चारो ओर बनी सड़क पर चलने के हक के लिए था. आंदोलन लंबा चला और इस दौरान पेरियार को कई बार जेल जाना पड़ा. पेरियार जब जेल में होते थे तो उनकी पत्नी एवं उनकी बहन उस आंदोलन का नेतृत्व करती थीं. एक तरह पेरियार ने अपने पूरे परिवार को बहुजन आंदोलन में लगा लिया था. अंत में पेरियार के आंदोलन के पश्चात यह सड़क शूद्रों एवं अस्पृश्यों के लिए खोल दिया गया. परंतु कांग्रेसियों एवं इतिहासकारों ने इस आंदोलन का सारा श्रेय मोहनदास करमचंद गांधी को दे दिया. 

यह बात तो दबी रहती परंतु 34 साल बाद 1958 में पेरियार ने इस आंदोलन का सारा हाल अपने मुंह से सुनाया, तब जाकर सच सामने आया. जब कहीं ये बात पता चली कि वैक्यूम सत्याग्रह का नेतृत्व तो पेरियार ने किया था. इसी कड़ी में पेरियार को कांग्रेसियों के ब्राह्मणवाद का पता दो और बातों से चला. 1925 में जब कांग्रेसियों ने शिक्षा के लिए गुरुकुल योजना शुरू कि तो यह योजना सभी वर्गों के बच्चों के लिए समान शिक्षा के लिए थी. परंतु कांग्रेस के ब्राह्मण नेताओं ने ब्राह्मण छात्रों के लिए अलग व्यवस्था की और अस्पृश्य जातियों के छात्रों के लिए अलग. यहां तक की ब्राह्मण छात्रों को भोजन में शुद्ध घी के पकवान दिए जाते थे और शूद्र और अस्पृश्य छात्रों को चावल का माड़. पेरियार ने इस पक्षपात पर घोर आपत्ति जताई. उन्होंने इसकी शिकायत मोहनदास करमचंद गांधी से भी कीय परंतु उन्होंने इसके लिए कुछ नहीं किया. इसी दौर में पेरियार को कांग्रेस में व्याप्त ब्राह्मणों के वर्चस्व का एक और उदाहरण दिखाई दिया. यह शूद्रों एवं अस्पृश्य जातियों के लिए राजनैतिक आरक्षण की व्यवस्था का था. पेरियार चाहते थे कि कांग्रेस पार्टी उपरोक्त समुदायों के लिए आरक्षण कि मुहिम चलाए और यह व्यवस्था करे कि जब उनकी सरकार बनेगी तो कांग्रेस इन समुदायों के लिए आरक्षण का प्रबंध करेगी. इसी आशय से पेरियार ने गांधी जी से भी मंत्रणा की, परंतु कांग्रेस के ब्राह्मणवादी नेताओं एवं ब्राह्मणवादी सोच ने उनकी एक नहीं चलने दी. उन्हीं सब कृत्यों के चलते एवं गांधी के इन कृत्यों पर मौन स्वीकृति के कारण पेरियार ने 1925 में अपने प्रदेश में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से ही नहीं बल्कि उसकी प्राथमिक सदस्यता से भी त्यागपत्र दे दिया.

 बाद में पेरियार ने गांधी एवं कांग्रेस की घोर भर्त्सना की और जनमानस को यह बताया कि अगर कांग्रेस का पिछड़ी एवं अस्पृश्य जातियों के प्रति रवैया समझना है तो डॉ. बी.आर आंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तक ‘गांधी एवं कांग्रेस ने अस्पृश्यों के लिए क्या किया’ अवश्य पढ़ें. यह तथ्य इस बात को स्थापित करता है कि पेरियार और बाबासाहेब आंबेडकर में कहीं न कहीं वैचारिक समानता थी और वे एक दूसरे के कार्य पर अपनी नजर रखते होंगे. इसके पश्चात पेरियार ने ब्राह्मणवाद के खिलाफ आंदोलन चलाया. उन्होंने ब्राह्मण धार्मिक ग्रंथों को मिथ्या आडंबर फैलाने वाला बताया. साथ ही साथ कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन कर द्रविड़ कड़गम की स्थापना की और उनका मूल मंत्र था, ‘नो गॉड, नो रिलिजन, नो ब्राह्मण, नो कांग्रेस एंड नो गांधी.’ 
 चिंतन जरूर करें 

पेरियार ई वी रामास्वामी नायकर के बारे में अधिक जानकारी के लिये निम्नलिखित लिंक पर जायें. 

जय सिंह 

औरत बँधी है परिवार की धुरी से







औरत बँधी है
तीज से, चौथ से,
छठ से, अहोई से,
निर्जल व्रत से,
अर्घ्य से, पारण से,
मन्नत से, मौलवी से,
टोटके से, संकल्प से
झाड़ -फुक के विकल्प से |

औरत बँधी है
दो गरम फुलकों से,
घी से, तरह-तरह के हलुए से,
मलाई वाले दूध से,
इस्त्री किये हुए कपड़ों से,
जिल्द लगी किताबों से,
सलीके से दौड़ती गृहस्थी से,
घड़ी के काँटों से बँधी सहूलियतों से |

औरत बँधी है
कुछ खोने के भय से,
अपना और अपनों को
संजो-सहेज कर रखने की आदत से,
खुद को भूल जाने की खुशी से,
थकान से, जिस्मानी हरारत से |

औरत बँधी है
संतानों की सुरक्षा और संस्कार से, 
पति की छाँव में भरे सुकून से,
परिवार की धुरी से,
अपेक्षाओं से अपेक्षाओं से |


औरत बंधी है
अंतर्मन से,
अपने दिल से,
जिम्मेदारी से,  
और उस पर कमाल ये कि 
वो केवल और केवल           
हाउस-वाइफ कह कर
रख दी जाती है, एक कोने में |


जय सिंह