सोमवार, 10 अगस्त 2015

खबरों के बाज़ार में पत्रकारों की भूमिका....



आज हम पत्रकारिता के भविष्य और दशा के सम्बन्ध में बात करना चाहता हू कि पत्रकारिता और पत्रकार की कैसी भूमिका रही है और वर्तमान में है।
पहले दौर की भारतीय पत्रकारिता और मौजूदा पत्रकारिता में एक बहुत बड़ा फर्क संप्रेषण को लेकर है। विगत के दशकों में ब्राडकासिटंग बहुत मुश्किल थी और सेटेलाइट नही थे। इसलिए आज भरतीय मीडिया में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। इस कारण से मीडिया का विस्तृत रूप हो गया है। पहले तो सिर्फ दूरदर्शन हुआ करता था। आज सैकड़ो टीवी चैनल्स एवं प्रिंट मीडिया हो गये है। सोशल  मीडिया की भी बड़ी भूमिका हो गर्इ है।
पहले के दौर की पत्रकारिता में खोजी पत्रकारिता सिटंग आपरेशन बहुत कम थे लेकिन अब इसका विस्तार हो गया है। साथ ही नकारात्मक पहलू यह है कि कारपोरेटाइजेशन के चलते मीडिया की विश्वसनीयता में गिरावट आ गर्इ है। जब-जब कार्पोरेटाइजेशन होता है तो सिथति गंभीर होती है। कुछ समय पहले अखबार एडिटर के कब्जे में हुआ करता था लेकिन आज विज्ञापन या शर्कुलेसन मैनेजर के कब्जे में है। इसलिए जो खबरें आज प्रकाशित हो रही है या दिखार्इ जा रही है वो विज्ञापन या प्रवन्ध की सोच के हिसाब से होती है। पाठकों का हित कही पीछे चला गया है। सिद्धान्त एवं मूल्य का हास हो रहा है। न्यूज का दायरा सीमित होता जा रहा है जबकि मनोरंजन पृष्ठ बठता जा रहा है। न्यूज अगर मनोरंजक है तो प्रकाशित हो जाती है, जबकि सूचना प्रधान खबरों का प्रकाशन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।
संपादक की भूमिका भी कमजोर होती दिखती है------
आज 400 से ज्यादा न्यूज चैनल है। ये अलग बात है कि ज्यादातर चैनल जो कुछ दिखाते है, उनका खबर से कोर्इ सरोकार नही है। नाग-नागिन का नाच, भूत-प्रेत, बाबाओं का प्रवचन, या किसी अभिनेता का सिरदर्द भी ब्रेंकिग न्यूज हो जाता है। बड़ी बात यह है कि ज्यादा चैनल होने के बाद भी उनकी गुणवत्ता में सुधार नही हुआ है।
अखबारों की बात करें तो 90 हजार से ज्यादा समाचार पत्र आर एन आर्इ में पंजीकृत है। इनमें से कुछ अखबारों का सकर्ुलेषन बहुत ज्यादा है। कर्इ अखबारों पर बाजार का दबाव है, एक तरह की मोनापोली भी है। पीछले कुछ वर्षो से बड़े-बड़े कार्पोरेट घरानों के मालिक मीडिया समूहों के मालिक बन गए है। अंबानी, विडला जैसे पूंजीपतियों ने मीडिया कम्पनी खरीद ली है। यह बदलाव लोक माध्यम के लिए अच्छा नही है। यह नागरिकों की अभिव्यकित की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के लिए शुभ संकेत नही है।
पत्रकार की भूमिका--
पत्रकार को किसी नियम से नही बांधा जा सकता है परन्तु नैतिक मूल्यों, मानवीय उददेष्यों, जन-कल्याण, दूरदृषिटता, रचनात्मक दृषिटकोण व लोकतंत्र से बंधे हुए है। ये बंधन हम सबको मर्जी से स्वीकार कर लेने चाहिए। पत्रकार के सामने मात्र तथ्यों को प्रस्तुत करना ही नही है बलिक उसे समाज का मित्र, दार्शनिक, और मार्गदाता का कार्य करना है। हर उस तथ्य पर उंगली उठानी है जो समाज की दशा को विकृत कर रहा है, उस घटना को जगह देनी है जो समाज की दिशा  को दिग्भ्रमित कर रही है। उसका महत्व शक्ति  संचय से नहीं कमजोरों में शक्ति  संचार से बढ़ेगा।
अफवाह चर्चा से सावधानी एवं बहुत दूरी बरतना बहुत आवष्यक है। पत्रकार की ताकत इस बात में निहित है कि वह नर्इ सभ्यता का नया किसान बन कर उभरा है जो वह परोसता है समाज उसे ही ग्रहण करता हैै। आज आम आदमी की जुबान पर जो बड़े-बड़े घोटालों के नाम है वे मीडिया की वजह से ही उजागर हुए है। जिन घोटालों या भ्रष्टाचार की शिकायत आज आम आदमी करता है, उसके पीछे पत्रकारों का बड़ा रोल है। लेकिन यह भी सच है कि मौजूदा मीडिया की चौथे पायदान की भूमिका में कमी आर्इ है, उसमें सूधार होना चाहिए। भारत ही नहीं दुनिया भर में मीडिया आज अहम किरदार है। इसका अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस देश में भी तानाशाही होती है, वहां की सरकार सबसे पहले प्रेस को बंद करती है। किसी भी लोकतंत्र को बचाए रखने के स्वतंत्र व मजबुत प्रेस होना बहुत जरूरी है।
आज का समाज घटना की छुपी हुर्इ सच्चार्इ को खोलकर सार्वजनिक करने की उम्मीद पत्रकारों से ही करता है। इस कठिन दौर में भी यदि पत्रकारिता की विष्वसनीयता बढ़ी है तो उसके पीछे लोगों का उनमें पनपता विष्वास है। किसान तक भी आस-पास की घटी घटनाओं को गांव का कम पढ़ा लिखा मजदूर भी मीडिया में पढ़ने के बाद ही प्रामाणिक मानता है।
कहते है कि एक सजग पत्रकार की निगाहें समाज पर होती है तो पूरे समाज की निगाहें पत्रकार पर होती है। पर दुर्र्भाग्यवश अब पत्रकारिता का स्वरूप एवं परिभाषा बदल गया है। संपादक खबरों की बजाय विज्ञापन एवं पेड न्यूज पर ज्यादा जोर दे रहे है। हम उन पत्रकारों को भी नही भुल सकते जिन्होनें यातानाएं सहने के बाद भी सच का दामन नही छोड़ा और देश की आजादी में अपना सर्बस्व न्योछावर कर दिये। ऐसे में जरूरत है कि पत्रकारिता को समाज की उम्मीद पर खरा उतरते हुए अपनी विष्वनियता को बरकार रखना होगा। पत्रकारिता सत्य, लोकहित में तथा न्यायसंगत होनी चाहिए।

जय सिंह