शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

व्यंग ---------------- मानाने में आगे


जिस तरह औरतें रूठे पिया को मनाती है| रसिक पति अपनी पड़ोसन प्रेमिका को मनाते है| नेता मतदाताओं को, छात्र अपनी गर्लफ्रेण्ड को, और मंत्री आंदोलनकारियों को मनाते है| राज्य स्तर के नेता हाइकमान को मनाते है, प्रथम श्रेणी के कर्मचारी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को मनाता है| अथवा जिस तरह आम आदमी अपनी जीन्दगी की खैर मनाता है| या फिर एक वेतन भोगी कर्मचारी पहली तारीख को भुगतान दिवस और तीन या पांच तारीख को उधार दिवस के रूप में मनाता है। कुछ-कुछ इसी तरह हमारी सरकारें और हम आप भी दिवस, जयंतिया, हफ़ते, महिने, और वर्ष वगैरह मनाते रहते है। हमारे दे में रात के नाम पर दिन, दिन में बे बारात, नवरात्र और शिवरात्र मनाया जाता हैं | इसके अलावां जो कुछ भी मनाया जाता है वह दिवस के रूप में मनाया जाता है। इनकी एक लम्बी लिस्ट है। वैसे  इन दिवसों को रातों में मनाये जाने की मनाही नही है| चाहे वह महिला दिवस ही क्यों हो। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के नाम पर रातों को भी दिन बना देते है। बकौल एक मशहुर शायर रात का इंतजार कौन करें, आज कल दिन में क्या नहीं होता और बकलम कवि जय, जब दिन इंतजार में बीता, रात को दिन बना लिया हमने 
खैर हमारे रग-रग, कण-कण, क्षण-क्षण में यह दिवस का नाम दूध और पानी की तरह घुसा हुआ है। कुष्ठ निवारण दिवस से एड्स दिवस, पर्यावरण दिवस से पोलियो दिवस तक हम मनाने को मजबुर व बेबस है। सच कहूं तो हम सब दिवस मनाने में इतने मगुल रहा करते है कि कब महिना बीत गया| यह हमें पता ही नही चलता है। मजदूर दिवस, किसान दिवस, महिला दिवस, बाल दिवस, स्वतंत्रता दिवस, जनसंख्या दिवस, शिक्षक दिवस,हिद दिवस, युवा दिवस, खेल दिवस, हिन्दी दिवस, हमारे कपितय ये महत्वपूर्ण दिवस है| ये सभी दिवस अलग अलग मनाये जाते है| मगर एक दूसरे के पुरक है। हम जानते है कि बिना महिला के बाल, बिना स्वतंत्रता के जनसंख्या, एवं बिना युवा के एड्स| और बिना हिद होने के भाव के बिना शिक्षक की अहमियत| कुछ कुछ वैसी ही मालूम होती है जैसे बिना हिन्दी दिवस के हिन्दी की। साल भर हर जगह अंग्रेजी भौकनें के बाद हम 365 दिन में एक बार हिन्दी दिवस जरूर मनातें है। इधर के कुछ वर्षो में अपने यहां हर या देहातों में डेज का चलन भी तेजी से आ गया है, मसलन जैसे फादर्स डे, फ्रेन्डशिप डे, वैलेन्टाइन डे, वाइफ डे, इनर्वसरी डे, और रोज न रोज बर्थ डे तो मनाया ही जाता है। यह सभी डे व दिवस पहले भी थे मगर किसी को कुछ मनाने की सुझी ही नही | लेकिन अब इस आधुनिक माहौल में नर्इ पीढी मनाने के लिए विव मजबुर कर दिये है।
जब हमारी मुड या कह लिजिए तबियत इन दिवसों और डेज को मनाते मनाते उब जाया करते है तो हम सप्ताह यानी वीक मनाने की सोचने लगते है तभी मेरा ध्यान कुछ महत्वपूर्ण सप्ताहों की तरफ जाता है। ट्रेफिक पुलिस वाले यातायात सप्ताह, जंगल विभाग वाले वन्य प्राणी सप्ताह, पुलिस लोग शिष्टाचार सप्ताह, बैक वाले लोग ग्राहक सेवा सप्ताह | बच निदेशालराष्ट्रीय बचत सप्ताह तथा पी0ए0सी0एल वर्कर प्रमोन सप्ताह मनाने में जुट जाया करते है। सप्ताह के नाम पर पुलिस और बदमाशो की अच्छी खासी हप्ता वसुली हो जाया करती है। मनाने के नाम पर सब मनमानी होती है। हम पितर पक्ष से लेकर लेकर विपक्ष तक सिर मुड़वाकर पखवारा मनाने की कला में भी हम किसी से पीछे नही रहते है। कहां-कहां हम किसकी-किसकी कितना बखान करें। हम आघोसित तौर पर शौक से बंद दिवस, पर्यटन दिवस, अनन सप्ताह, आरक्षण पखवारा, लोन पखवारा, लोन पखवारा, आन्दोलन माह, सुरक्षा वर्ष, धान वर्ष, आवास वर्ष, और भ्रष्टाचार वर्ष मनाये चले जा रहे है। घोषित तौर पर हम सब शान से गुंडागर्दी की स्वर्णजयंती, खुनी, डकैती की सिल्वर जयंती और आतंकवाद की रजत जयंती खुशी पूर्वक मना रहे है।



आपका – जय सिंह
 युवा कवि,व्यंगकार,कहानीकार,नाटककार एवं समाजसेवी