बुधवार, 25 नवंबर 2020

दुनिया में सबसे बड़ा है भारत का संविधान, ये 21 बातें बनाती हैं खास...

 


भारतीय संविधान सभा की ओर से 26 नंवबर 1949 को भारत का संविधान पारित हुआ और 26 जनवरी 1950 को प्रभावी हुआ. भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है.
भारतीय संविधान सभा की ओर से 26 नंवबर 1949 को भारत का संविधान पारित हुआ और 26 जनवरी 1950 को प्रभावी हुआ. भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है. भारतीय संविधान में वर्तमान समय में 465 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 22 भागों में विभाजित है. आइए जानते हैं हमारे संविधान से जुड़े कई रोचक तथ्य...

1. बाबासाहेब डॉ. भीम राव अंबेडकर को भारत का संविधान निर्माता कहा जाता है. वे संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष थे.

2. अंबेडकर को संविधान का फाइनल ड्राफ्ट तैयार करने में 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे.

3. पूरे देश में 26 नवंबर को संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है.

भारतीय संविधान सभा से जुड़े महत्‍वपूर्ण तथ्‍य और जानकारी

4. देश का सर्वोच्‍च कानून हमारा संविधान 26 नवंबर, 1949 में अंगीकार किया गया था.

5. संविधान सभा पर अनुमानित खर्च 1 करोड़ रुपये आया था.

6. मसौदा लिखने वाली समिति ने संविधान हिंदी, अंग्रेजी में हाथ से लिखकर कैलिग्राफ किया था और इसमें कोई टाइपिंग या प्रिंटिंग शामिल नहीं थी.

7. संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे. जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे.

8. 11 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया, जो अंत तक इस पद पर बने रहें.

9. इसमें अब 465 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं और ये 22 भागों में विभाजित है. इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं.

10. संविधान की धारा 74 (1) में यह व्‍यवस्‍था की गई है कि राष्‍ट्रपति की सहायता को मंत्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रमुख पीएम होगा.

11. आज से ठीक 66 साल पहले भारतीय संविधान तैयार करने और स्वीकारने के बाद से इसमें पूरे 100 संशोधन किए जा चुके हैं.

संविधान दिवस पर जानें देश के संविधान से जुड़ी 10 खास बातें

12. संविधान में प्रशासन या सरकार के अधिकार, उसके कर्तव्य और नागरिकों के अधिकार को विस्तार से बताया गया है.

13. संविधान में सरकार के संसदीय स्‍वरूप की व्‍यवस्‍था की गई है जिसकी संरचना कतिपय एकात्‍मक विशिष्‍टताओं सहित संघीय हो. केन्‍द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्‍ट्रपति है.

14. भारत की संविधान सभा का चुनाव भारतीय संविधान की रचना के लिए किया गया था. ग्रेट ब्रिटेन से स्वतंत्र होने के बाद संविधान सभा के सदस्य ही प्रथम संसद के सदस्य बने.

15. कैबिनेट मिशन की संस्तुतियों के आधार पर भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 ई० में किया गया.

16. संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी, जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवं 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे.

17. हैदराबाद एक ऐसी रियासत थी, जिसके प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित नहीं हुए थे.

19. संविधान के प्रारूप पर कुल 114 दिन बहस हुई.

20. संविधान के कुछ अनुच्छेदों में से 15 अर्थात 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 372, 380, 388, 391, 392 तथा 393 अनुच्छेदों को 26 नवंबर, 1949 ई० को ही परिवर्तित कर दिया गया; जबकि शेष अनुच्छेदों को 26 जनवरी, 1950 ई० को लागू किया गया.

21. समाजवादी शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया.


भारतीय संविधान के प्रमुख भाग इस प्रकार हैं-

भाग-1 संघ एवं उसका राज्य क्षेत्र: अनुच्छेद 1 से 4

भाग-2 नागरिकता: अनुच्छेद 5 से 11

भाग-3 मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 12 से 35

भाग-4 नीति-निर्देशक तत्‍व: अनुच्छेद 36 से 51

भाग-4 (क) मूल कर्तव्‍य: अनुच्छेद 51 (क)

भाग-5 संघ: अनुच्छेद 52 से 151

भाग-6 राज्य: अनुच्छेद 152 से 237

भाग-8 संघ राज्य क्षेत्र: अनुच्छेद 239 से 242

भाग-11 संघ और राज्यों के बीच संबंध: अनुच्छेद 245 से 263

भाग-14 संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं: अनुच्छेद 308 से 323

भाग-15 निर्वाचन: अनुच्छेद 324 से 329

भाग-17 राजभाषा: अनुच्छेद 343 से 351

भाग-18 आपात उपबंध: अनुच्छेद 352 से 360

भाग-20 संविधान संशोधन: अनुच्छेद 368

 

जय सिंह (आईआईएस)

बी.कॉम, एम.कॉम,पीजीडीसीए, बीएड, एमबीए, एमसीजे, एम.फिल,नेट   

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

समय .......

कहा जाता है की समय रुकता नहीं है, अपनी चाल से चलता रहता है और न जाने कितनी यादें अपने में समेटते हुए चला जाता है ।
जीवन को समय ने आज कहा से कहा ला दिया है, फुरसत समय में सब याद आने लगता है ।
समय को देखिये और अपने बीते हुए जीवन को महसुस करिए .....

- पांचवी तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे।

- स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी, लेकिन इसमें पाप बोध भी था, कि कहीं विद्या माता नाराज न हो जायें ।

-पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था ।

-स्कूल में टाट पट्टी की अनुपलब्धता में घर से बोरी का टुकड़ा बगल में दबा कर ले जाना भी हमारी दिनचर्या थी ।

- पुस्तक के बीच विद्या, पौधे की पत्ती और मोर पंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे, ऐसा हमारा दृढ विश्वास था । 

- कक्षा छः में पहली दफा हमने अंग्रेजी का ऐल्फाबेट पढ़ा और पहली बार एबीसीडी देखी ।

- यह बात अलग है बढ़िया स्मॉल लेटर बनाना हमें बारहवीं तक भी न आया था ।

- कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था ।

- हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था ।

- माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी,  न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी । सालों साल बीत जाते पर माता-पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे ।   

- एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं,  यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं ।   

- स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था,  दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है।

- पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी, पीटने वाला और पिटने वाला दोनो खुश थे, पिटने वाला इसलिए कि कम पिटे,  पीटने वाला इसलिए खुश कि हाथ साफ़ हुआ ।

- हम अपने माता-पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं क्योंकि हमें आई लव यू कहना नहीं आता था ।

- आज हम गिरते . सम्भलते,  संघर्ष करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं,  कुछ मंजिल पा गये हैं तो कुछ न जाने कहां खो गए हैं ।

- हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन यह सच है,  हमे हकीकतों ने पाला है,  हम सच की दुनियां में थे ।

- कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना और रिश्तों को औपचारिकता से बनाए रखना हमें कभी नहीं आया इस मामले में हम सदा मूरख ही रहे ।

- अपना-अपना प्रारब्ध झेलते हुए हम आज भी ख्वाब बुन रहे हैं,  शायद ख्वाब बुनना ही हमें जिन्दा रखे है, वरना जो जीवन हम जीकर आये हैं उसके सामने यह वर्तमान कुछ भी नहीं ।

- हम अच्छे थे या बुरे थे, पर हम एक समय थे, काश वो समय फिर लौट आए ।
  बस यूं ही

 जनता कर्फ़्यू में फ़ुरसत के पल कुछ जीवन की कड़वी सच्चाई दिल से निकल ही गई । क्योंकि समय था ।


आपका 
जय सिंह 

विशेष लेख -- इच्छाओं का अंत कहां.....


जीवन की पहली बुनियादी बात है, अगर आप अपने जीवन में शांति और आनंद पाना चाहते हैं तो, दो बातों से जरूर बचें I पहली आकांक्षाओं का मकड़जाल और दूसरी व्यर्थ की कल्पना।
अगर आपके भीतर चिंता का भूत सवार है, तनाव, अवसाद है, घुटन है, विफलता के कारण कुछ कर नहीं पा रहें है I तो इसका मूल कारण है, व्यर्थ की कल्पनाएं और अनेको कांक्षाओं का मकड़जाल। एक इच्छा को पूरी कर देने से क्या इच्छाएं समाप्त हो जाती है-
जितनी इच्छाएं पूरी करते हैं उतनी ही बढ़ती जाती है। आदमी का अंत हो जाता है लेकिन इच्छाओं का अंत नहीं होता। हमारी इच्छाएं आकाश के समान अनंत है। जैसे आकाश मकान के पार समाप्त होता दिखाई देता है, लेकिन वहां जाकर देखने से वह फिर उतना ही दूर हो जाता जितना पहले था। वैसे ही जीवन में इच्छाएं चाहे जितनी पूरी करते जाएं फिर भी वह पकड़ से बाहर रहती है।
ये भी पा लूं, वही भी बटोर लूं, और बटोरते-बटोरते घर में कितना संग्रह करते जा रहे है। कभी घर में देखा है आपने कितना कूड़ा करकट इकठ्ठा कर रखा है। खाली डिब्बे काम के न थे पर रख लिए कि भविष्य में कभी काम आंऐंगे।
ये चीज काम की नहीं है, पर अभी रख लूं भविष्य में काम आएगी। हम घरों में पचास प्रतिशत सामान ऐसा रखते है जिनका उपयोग छह महीनों में कभी नहीं करते। बेवजह का संग्रह। जो लोग बेवजह संग्रह करते है वे जीवन भर तो संग्रह करते ही है मृत्यु के कगार पर पहुंचकर उनके प्राण इसी संग्रह में अटक जाते है।
व्यक्ति जीवन में केवल आवश्यकताओं की पूर्ति करे। आपकी आवश्यकता बीस साडि़यों की है लेकिन आकांक्षा पचास साडि़यों की है। पूरूष लोग ही एक छोटा सा नियम ले ले कि वे एक ही रंग के कपड़े पहनेंगें जैसे कि केवल सफेद।
अब हमें देखिए हमारा नियम है श्वेत कपड़े पहनने का अब कितना संग्रह करेंगे। जब आपका भी नियम होगा तो कितने वस्त्र इकट्ठे करेंगे एक रंग के, लरेगरें में रंग का भी राग है। कपड़े सब कपड़े है, पर रंगों का फर्क है। महिलाएं बेहिसाब साड़ियां इकट्ठी करती हैं, पर पहन कितनी पाती है। एक बार में एक ही साड़ी पहनोंगे न, दो तो नहीं पहन पाओगे। रंगों का भी अपना राज है। यह आपके स्वभाव के प्रतीक होते है। किसी को लाल रंग पसंद है, तो किसी को गुलाबी, तो किसी को पीला रंग पसंद होता है। जिसका स्वभाव तेज होता है उसे लाल रंग पसंद होता है। जिसका स्वभाव मीठा होता है, उसे गुलाबी रंग अच्छा लगता है। जिसका स्वभाव खट्टा-मीठा होता है उसे पीला रंग अच्छा लगता है।
जो शांत स्वभाव का होता है उसे सफेद रंग अच्छा लगता है, जिसकी जैसी चित्त की प्रकृति होती है वैसे-वैसे रंग के कपड़े पहनने की कोशिश करता है। व्यक्ति आकांक्षाओं की सीमा बनाएं।
रहने के लिए मकान है, खाने के लिए रोटी है, पहनने के लिए कपड़े है, समाज में इज्जत की जिंदगी है तो विश्राम लो। अपनी आवश्यकतानुसार ही धन कमाओं और बेवजह उलझकर रातों की नींद और दिन का चैन न खोओ।
आपको याद होगा जब डा0 एपीजे अब्दुल कलाम साहब की जायजाद की गिनती की गयी तो पाया गया कि-
6 पैंट जिसमें 2 डीआरडीओ ड्रेस है
4 शर्ट जिसमें 2 डीआरडीओ ड्रेस है
3 सुट में से 1 पश्चिमी और 2 भारतीय
2500 किताबें
1 फ़्लैट जो संशोधन के लिए दान है

1 पदमश्री
1 पदमभूषण
1 भारत रत्न
16 डाक्टरेट
1 बेबसाईट
1 ट्विटर
1 मेल
टीवी, एसी गाड़ी, जेवर, शेयर, जमीन-जायजाद, बैंक-बैलेंस कुछ नहीं I
पीछले आठ सालों से पेंशन की भी रकम अपने गांव की ग्राम पंचायत को दान दे दी।
जिस दिन हमारा निधन होता है, उसी दिन ही सब धन दूसरे का हो जाता है I
हमारा पैसा बैंक में ही रह जाता है। जब हम जिन्दा रहते है, तो हमें लगता है कि हमारे पास खर्च करने को प्रयाप्त धन नही है। जब हम चले जाते है तो तब भी बहुत सा धन बिना खर्च हुये बच जाता है।
एक चीनी बादशाह की मौत हुई तो वो अपनी विधवा के लिये बैक में 1.9 मिलियन डालर छोड़ कर गया। विधवा ने जवान नौकर से शादी कर ली। उस नौकर ने कहा, मै हमेशा सोचता था, कि मै अपने मालिक के लिये काम करता हू I अब समझ में आया कि वो हमेशा मेरे लिये काम करता था।

सीख-
ज्यादा जरूरी है कि अधिक धन अर्जन के बजाय अधिक जिया जाय I
अच्छे स्वास्थ्य और शरीर के लिए प्रयास करिये I
महंगे फोन के 70 प्रतिशत फंक्शन अनुपयोगी रहते है I
महंगी कार की 70 प्रतिशत गति का उपयोग नही हो पाता है I
आलिशान मकानों का 70 प्रतिशत हिस्सा खाली रहता है I
पुरी आलमारी के 70 प्रतिशत कपड़े पड़े रहते है, जिसका उपयोग पुरी लाईफ मे नही हो पाती है।
पुरी जिन्दगी की कमाई का 70 प्रतिशत दूसरों के उपयोग के लिए छूट जाता है I

70 प्रतिशत गुणों का उपयोग नही हो पाता तो 30 प्रतिशत का उपयोग कैसे हो-
स्वस्थ्य होने पर भी अपना निरंतर चेकप कराते रहें
प्यासे न होने पर भी अधिक पानी पियें
जब भी संभव हो अपना अहं त्यागें
शक्तिशाली होने पर भी सरल रहें
धनी न होने पर भी परिपूर्ण रहे और बेहतर जीवन जीये।
 आपका 

जय सिंह 
युवा कवि,लेखक, कहानीकार,ब्यंग्कार, गीतकार 

मंगलवार, 31 मार्च 2020

कहानी- कोरोना वायरस: अपने होते पराये

राम किशन जी एक सेवानिवृत अध्यापक हैं। सुबह दस बजे तक ये एकदम स्वस्थ प्रतीत हो रहे थे। शाम के सात बजते-बजते तेज बुखार के साथ-साथ वे सारे लक्षण दिखायी देने लगे, जो एक कोरोना पॉजीटिव मरीज के अंदर दिखाई देते हैं । 
       परिवार के सदस्यों के चेहरों पर खौफ़-साफ़ दिखाई पड़ रहा था। उनकी चारपाई घर के एक पुराने बड़े से बाहरी कमरे में डाल दी गयी, जिसमें इनके एक पालतू कुत्ते का बसेरा है। राम किशन जी कुछ साल पहले एक छोटा सा घायल पिल्ला सड़क से उठाकर लाये थे। उसे अपने बच्चे की तरह पालकर इसको नाम दिया था मार्शल। इस कमरे में अब राम किशन जी व उनकी चारपाई और उनका प्यारा मार्शल हैं। दोनों बेटों,.बहुओं ने दूरी बना ली और बच्चों को भी पास ना जानें के निर्देश दे दिए गये थे। सभी परिवार वाले उनके हालत को देखकर डरे-सहमे और दुरी बना लिए थे।
       भारत सरकार व प्रदेश सरकार द्वारा जारी किये गये नंबर पर फोन करके सूचना दे दी गयी। खबर मुहल्ले भर में फैल चुकी थी। लेकिन मिलने कोई नहीं आया। साड़ी के पल्ले से मुँह लपेटे हुए,  हाथ में छड़ी लिये पड़ोस की  एक बूढी अम्मा आई और राम किशन जी की पत्नी से बोली। अरे कोई इसके पास क्यों नहीं है ? रामकिशुन को कोई दूर से खाना भी सरका दो । कुछ खा-पी ले बेचारा। वे अस्पताल वाले आयेंगे तो इसे भूखे को ही ले जाएँगे उठा के। अब प्रश्न ये था कि उनको खाना देनें के लिये कौन जाए। बहुओं ने खाना अपनी सास को पकड़ा दिया। अब राम किशन जी की पत्नी के हाथ में थाली पकड़ते ही काँपने लगी, पैर मानो खूँटे से बाँध दिये गए हों । 
     इतना देखकर वह पड़ोसन बूढ़ी अम्मा बोली राम किशन के पत्नी से बोली की अरे ये तेरा तो पति है। तू भी.............इसे छोड़कर दूर खड़ी है । जा तू ही मुँह बाँध के चली जा और दूर से थाली सरका दे। वो अपने आप उठाकर खा लेगा। सारा वार्तालाप राम किशन जी चुपचाप सुन रहे थे उनकी आँखें नम थी और काँपते होठों से  उन्होंने कहा कि कोई मेरे पास ना आये तो बेहतर है मुझे भूख भी नहीं है । 
    इसी बीच एम्बुलेंस आ जाती है और राम किशन जी को एम्बुलेंस में बैठने के लिये बोला जाता है। राम किशन जी घर के दरवाजे पर आकर एक बार पलटकर अपने घर की तरफ देखते हैं । पोती-पोते घर में लगी सीसे की खिड़की से मास्क लगाए दादा को निहारते हुए, और उन बच्चों के पीछे सर पर पल्लू रखे उनकी दोनों बहुएँ निराशा भरी नजरों से देख रही थी घर के दरवाजे पर दोनों बेटे कोरोना के डर से काफी दूर अपनी माँ के साथ खड़े थे । तरह-तरह के विचारों का तूफान राम किशन जी के अंदर उमड़ रहा था। उनकी पोती ने उनकी तरफ हाथ हिलाते हुए बाय-बाय कही। एक क्षण को उन्हें लगा कि जिंदगी ने अब अलविदा कह दिया
    राम किशन जी की आँखें आंसुओ से लबलबा उठी। उन्होंने हॉस्पिटल जाने से पहले बैठकर अपने घर की देहरी को चूमा और एम्बुलेंस में जाकर बैठ गये। उनकी पत्नी ने तुरंत पानी से भरी बाल्टी घर की उस देहरी पर उलेड दी जिसको राम किशन चूमकर एम्बुलेंस में बैठे थे। इसे तिरस्कार कहो या मजबूरी, लेकिन ये दृश्य देखकर इंसानियत भी शर्मशार हो रहा था। कुत्ता भी रो पड़ा और उसी एम्बुलेंस के पीछे-पीछे हो लिया जो राम किशन जी को अस्पताल लेकर जा रही थी। 
    राम किशन जी अस्पताल में 14 दिनों के अब्ज़र्वेशन पीरियड में रहे। उनकी सभी आवश्यक जांचे समय से की जा रही थी। जाँच सामान्य थी। कुछ दिन के बाद उन्हें पूर्णतः स्वस्थ घोषित करके छुट्टी दे दी गयी। हॉस्पिटल से निकलने से पहले उन्हें उम्मीद थी की घर वाले उनको लेने आयेंगे। जब वह अस्पताल से बाहर निकले तो उनको लेने के लिए कोई नहीं आया था। अस्पताल के गेट पर उनका कुत्ता मार्शल बैठा दिखाई दिया। दोनों एक दूसरे से लिपट गये। एक की आँखों से गंगा तो एक की आँखों से यमुना बहे जा रही थी। जब तक उनके बेटों की लग्ज़री लम्बी गाड़ी उन्हें लेने पहुँचती, तब तक वो अपने कुत्ते को लेकर किसी दूसरी दिशा की ओर निकल चुके थे। 
    उसके बाद वो कभी दिखाई नहीं दिये। आज उनके फोटो के साथ उनकी गुमशुदगी की खबर छपी है। अखबार में लिखा है कि सूचना देने वाले को 40 हजार का ईनाम दिया जायेगा । 40 हजार.......हाँ पढ़कर  ध्यान आया कि इतनी ही तो मासिक पेंशन आती थी उनकी। जिसको वो परिवार के ऊपर हँसते-गाते उड़ा दिया करते थे।

 हाँ तो साथियों, कोरोना वायरस से अपने आप को बचा के रखिये, घर में बने रहिये, सुरक्षित रहिये, बार-बार साबुन से हाथ-मुह धोइएमुह, नाक और आँख को बार-बार न छुइए, संदिग्ध लोगों से दुरी बनाकर रखिये। वरना क्या पता अपना ही हमे पल भर में बेगाना बना दे। जिंदगी भर की कमाई हुई मान सम्मान, धन दौलत सब एक छोटी सी असावधानी और गलती के कारण सब कुछ खोना पड़ जाय।


आपका 
जय सिंह 
युवा कवि, कहानीकार, व्यंगकार, गीतकार