बुधवार, 17 जुलाई 2013

पांच अरकान पर इस्लाम की बुनियाद

 कलमा, नमाज, रोजा, जकात और हज। इस्लाम की बुनियाद इन पांच अरकान पर टिकी है। इन पांचों को फर्ज मानते हुए जो इंसान इस्लाम में दाखिल होता है उसकी जिंदगी आसान और खुशगवार गुजरती है। हर अरकान की अपनी फजीलत है। एक भी अरकान जिसे इंसान अपना फर्ज नही मानता वह इस्लाम से बाहर होता है। हर मुस्लिम को रमजान मुबारक का अहतराम और इबादत करनी चाहिए। इस माह में इस्लाम के पांच रूकुनों में से चार पूरे होते है।


तौहीद: अल्लाह को एक मानना। उसकी जात में किसी दूसरे को शरीक न करना। साथ ही अल्लाह के नबी को अखिरी पैगंबर मानना। आखिरी किताब कुरान-ए-पाक है। इसमें पूरा दीन मुकम्मल कर दिया है। तौहीद कुबूल करने के बाद ही इंसान इस्लाम में दाखिल होता है।

नमाज: हर मुसलमान पर पंच वक्त की नमाज फर्ज है। नमाज में छूट किसी भी हालत में नही है। जब तक आदमी होश में है, तब तक उस पर नमाज माफ नही है। अगर आदमी सफर में है, तो भी उस पर नमाज की छूट नहीं है। औरतों के लिए माहवारी के दौरान नमाज की छूट है।

रोजा: रमजान माह में रोजे फर्ज है। अल्लाह ताला इस मुबारक माह में आजमाता है कि कौन कितना परहेजगार है। रोजे के बारे में अल्लाह ने फरमाया है कि इसका अजर मै खुद ही दूंगा।

जकात: जकात हर साहिब-ए-निसाब पर फर्ज है। इसमें जिस के पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोले चांदी या फिर इनके बराबर रकम हो उसे भी पूरा एक साल हो चुका हो तो हर आदमी पर जकात फर्ज हो जाती है।

हज: मुसलमान पर जिंदगी में सिर्फ एक बार हज करना फर्ज है। हज भी उसी शक्ल में फर्ज है, जब हज जाने वाले के पास इतना पैसा हो कि वह हज के दौरान रहन-सहन, आने-जाने का खर्च उठा सके। इसके अलावा जितने दिन के लिए हज की जियारत पर है, उतने दिन इसके परिवार को खाने-पीने आदि की दिक्कत न हो।

आप सभी को पाक रमजान महीने की ढेर सारी शुभकामनाये

जय सिंह 


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