मंगलवार, 4 सितंबर 2012

शिक्षक दिवस



गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
सम्मानीय सभी शिक्षकों को मेरा कोटि- कोटि नमन !
जिनकी कृपा से आज ”5th सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है वह हैं -डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
कहते हैं कि – ” जब वह राष्ट्रपति के पद पर सुशोभित हुए तो उनके शिष्यों ने और उनके चाहने वालों ने उनके सम्मान में 5th सितम्बर को उनका जन्मदिवस मानाने का विचार उनके समक्ष रखा | इस पर उन्होंने आज के दिन को अर्थात “5th सितम्बर को सभी शिक्षको के सम्मान का दिन शिक्षक- दिवस मानाने को कहा था | तब से हम डॉ . सर्वपल्ली के जन्मदिन के साथ-साथ शिक्षक-दिवस भी मनाते चले आ रहें हैं | अत : इस दिन हम सब के साथ विशेष तौर से हर शिक्षक को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का अवश्य आभार व्यक्त करना चाहिए जिनकी वज़ह से  आज के दिन को  उनके सम्मान के दिनसे जाना जाता है | हर वर्ष आज के दिन पूरे भारतवर्ष के उन सभी शिक्षको को जिनका शिक्षण- जगत में महती योगदान होता है उनको माननीय राष्ट्रपति के द्वारा पुरस्कार एवं सम्मान दिया जाता है|
शिक्षक कई प्रकार के होतें हैं-
१-    सामान्य शिक्षक जो केवल शिक्षा दे अथवा पढाये |
२-    विशिष्ट शिक्षक जो पढ़ने के साथ-साथ व्याख्या भी करें |
३-    श्रेष्ठ शिक्षकजो दोनों गुणों के साथ-साथ उदाहरण भी दे कर अपने शिष्यों को स्पष्ट करें
४-    महान शिक्षक वह कहलातें हैं जो अपने शिष्यों को पुस्तकों के ज्ञान दें ; विशेषता बताये ; विभिन्न उदाहरणों द्वारा उनके ज्ञान को सुदध्रण बनाये और सदा आगे बढ़ने एवं विशिष्ट स्थान प्राप्त करने की प्रेरणा भी दें |

आज पाँच सितम्बर है यानी शिक्षक दिवस। आज हम सभी उन अध्यापकों, गुरुओं, आचार्यों, शिक्षकों, मास्टरों, टीचरों को बधाइयाँ देते हैं, याद करते हैं, जिन्होंने हमारे जीवन-दर्शन को कहीं न कहीं से प्रभावित किया। गुरू को इश्वर से अधिक महत्व प्राप्त है। गुरू का नाम ज़रूर बदला है, लेकिन हरेक के जीवन में कहीं न कहीं गुरू रूपी तत्व का समावेश ज़रूर है। ज़रूरी नहीं कि गुरू किसी गुरू के चोंगे में ही हो। प्रत्येक का गुरू अलग है। किसी के लिए माँ गुरू है, किसी के लिए पिता तो किसी के लिए मित्र। किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में उसके माता-पिता के बाद शिक्षकों का ही प्रभाव पड़ता है| प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्चतर शिक्षा तक के सफ़र में हर व्यक्ति के जीवन में कई शिक्षकों का ज्ञान व उनका सहारा मिलता है| हर अध्यापक अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ता हैं| इन्हीं सबसे मिल-जुल कर हर व्यक्ति का विकास होता है और एक व्यक्तिवस्पष्ट होता है | सचमुच शिक्षक की तुलना ताराश्कार से करना गलत नहीं होगा | क्योकि जैसे एक ताराश्कार मूर्ति को भली- भांति तराशकर सुन्दर बनता है ठीक वैसे ही शिक्षक भी शिष्यों को तराश्तें हैं और उनका जीवन सुन्दर बनातें हैं. बिना गुरु हम ज्ञान की कल्पना भी नहीं कर सकतें| महान गुरु की महिमा अपरम्पार होती है क्योकि वह अपने शिष्यों का बहुमुखी विकास करता है | वह अपने शिष्यों में परिवार , समाज , राष्ट्र एवं विश्वस्तर की कल्याणकारी सोच जाग्रत करता है | 
एक शिक्षक भले राष्ट्रपति अथवा आई.ए.स. या अन्य किसी विशेष पद को न प्राप्त कर सका हो परन्तु उसके अन्दर शिष्योंको इन विशेष पदों तक पहुँचाने की शक्ति जरूर छिपी होती है| वर्तमान में शिक्षण प्रणाली में समयानुसार काफी परिवर्तन किये गएँ हैं | जैसा कि हर क्षेत्र में समयानुसार संशोधन की मांग होती है.
और आज की नवीन शिक्षा प्रणाली से हर किसी में पढने की ललक जाग्रत हुई है पढाई का भूत गायब हुआ है- मेरे विचार से.कुछ समय पहले तारे ज़मीन पर फिल्म से अध्यापक और शिष्यों के बीच की डर की खाई मिटती नजर आई और एक फ्रेंडशिप जैसा माहौल दोनों के बीच बनने लगा | जो कि.. एक परिधि तक सराहनीय है. अत: युग कोई भी हो एक परिश्रमी सदाचारी महान शिक्षक सदा ही सम्मानीय एवं पूज्यनीय रहेगा “.शुभकामनाओं सहित 


आपका - जय सिंह