रविवार, 23 दिसंबर 2012

हर रोज बलात्कार !


इन दिनों देश के हर अखबारों, समाचार चैनलों, राजनीतिक, सामाजिक, और धार्मिक इलाकों मे क्रमश: तरह-तरह के भाषा और शीर्षक में स्त्री पर बलात्कार और छेड़छाड़ का आलम पुर असर है। उत्तर प्रदेश हो या देश की राजधानी दिल्ली कहीं भी लड़कियां सुरक्षित नही है। आये दिन बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाओं से पुरा अखबार पटा रहता है। कोर्इ भी जगह सुरक्षित नही है। रास्ते में मनबढ़ लड़कों द्वारा, स्कूल-कालेजों में टीचर द्वारा, घर में रिश्तेदारों द्वारा, थाने में सिपाहियों द्वारा, महिला के साथ बलात्कार या छेड़छाड़, ऐसे समाचार रोज देखने और पढ़ने को मिल रहे है। दिल्ली में चलती बस में एक लड़की के साथ सामुहिक बलात्कार का मामला दिल को दहला देने वाली है।
दिल्ली पुलिस ''हेल्पलाइन'' अभियान चलाने वाले चाहे जितने दावे कर ले, पर सच यह है कि भारत के किसी भी बड़े शहर के मुकाबले देश की राजधानी दिल्ली में महिलाएं सबसे कम सुरक्षित है। यहां प्रतिदिन एक से ज्यादा बलात्कार के मामले दर्ज होते है और छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न की दो से अधिक घटनाएं प्रकाश में आती है। ''नेशनल क्राइम रिकार्डर्स ब्यूरो'' के आंकड़ों के मुताबिक हर साल देश के सभी बड़े शहरों में कुल मिलाकर बलात्कार के जितने मामले दर्ज होते है उनमें एक-तिहार्इ से ज्यादा मामले अकेले दिल्ली शहर के होते है। इसी तरह छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न के मामले में भी दिल्ली शहर का ग्राफ सबसे उपर रहता है। महानगरों एवं प्रमुख राज्यों की राजधानियों समेंत सभी बड़े शहरों में महिलाओं से छेड़छाड़ एवं उत्पीड़न के जितने मामले दर्ज होते है उनमें से करीब 25 फीसदी मामले अकेले दिल्ली के होते है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक सबसे ज्यादा दिल्ली शहर में ही ''चाइल्ड रेप'' की घटनाएं होती है। छोटी लड़कियों के साथ होने वाली बलात्कार की 80 फीसदी घटनाओं में खुद अभिभावक ही लिप्त पाये गये है।
बलात्कार चाहे उसे समाज के माथे का कलंक कहिए या आधी दुनिया की विवशता या पुरूषसत्ता की गुंडागर्दी, लेकिन यह यानी बलात्कार रोज होता है। ज्यादातर मामले को तो पुलिस वाले दर्ज ही नही करते है। यदि किसी तरह से दर्ज हो भी जाते है तो उनमें अधिकतर मामलों की कोर्इ जांच-पड़ताल नहीं करता, ऐसे मामले खबर की सुर्खियों में भी नही आते। खबर तब बनती है, जब कोर्इ बड़ा हादसा हो जाता है। टेलीविजन पर जाने के बाद सब कुछ एक ''इवेंट'' का रूप ले लेता है। आज के दौर की विडम्बना यह है कि किसी भी विषय पर बना-बनाया कोर्इ भी सैद्धातिंक सूत्रीकरण काम नहीं आता। नये तर्क और कुतर्को का एक अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाता है। पहले कहा जाता था कि जब लोकतंत्र प्रौढ़ता हासिल कर लेगा और आधुनिकता की बयार बह चलेगी, तब समाज में बलात्कार जैसी जघन्य कृत्य स्वत: समाप्त हो जायेगी। लेकिन यह बात भी गलत साबित हो रही है। पशिचम में आधुनिकता की आंधी बहते-बहते अब थमने की कगार पर पहुचने को है, लेकिन आंकड़े बताते है कि उन देशों में बलात्कार जैसे अपराधों की दर घटी नहीं है। भारत के महानगर पशिचम के किसी आधुनिक शहर में कम नहीं है, लेकिन यहां भी बलात्कार का ग्राफ सबसे ऊपर दिल्ली और मुंबर्इ का है। इस समय एक तर्क यह भी चल निकला है कि नग्नता की हद तक आधुनिक संस्कृति भी यौन उत्पीड़न का रास्ता खोलती है। इसको काटता दूसरा तर्क भी जायज है कि अगर यही सही है, तो फिर भंवरी देवी, हनीफा खातून, कुमारी मथुरा और रोज कोर्इ कोर्इ लड़की बलात्कार की शिकार क्यों होती है और लगभग निर्वस्त्र घूमती ''माडल युवतियों'' के साथ बलात्कार क्यों नही होता।
बलात्कार को लेकर महिला संगठन द्वारा समय-समय पर सर्वेक्षण होते रहते है। करीब दो वर्ष पहले हुए ऐसे ही एक सर्वेक्षण से पता चला कि भारत में बलात्कार के 16 फीसदी मामले ही पुलिस थाने में दर्ज हो पाते हैं। बलात्कार की शिकार करीब 84 प्रतिशत औरतें विभिन्न तरह के दबावों के चलते शिकायत करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पातीं। आंकड़ों से यह भी पता चला कि बलात्कार की शिकार महिलाओं में करीब एक-तिहार्इ की उम्र 16 वर्ष से कम होती है। ग्रामीण अंचलों में तो बमुशिकल एक प्रतिशत मामले ही दर्ज हो पाते हैं। सबसे शर्मनाक तो यह है कि 100 में से मात्र 4 बलात्कारियों को ही अदालत से दंड मिल पाता है, बाकी 94 का कुछ नहीं बिगड़ता है। वे समाज में सरेआम सीना तानकर घूमते रहते हैं। एक तथ्य यह भी उजागर हुआ है कि बलात्कार की शिकार 100 महिलाओं में करीब 84 महिलाएं बलात्कारी को अच्छी तरह पहचानती हैं और 10 में से 3 बलात्कारी तो उसका पड़ोसी होता है। यही नहीं 100 में से लगभग 3 फीसदी बलात्कारी तो परिवार के ही सदस्य होते हैं। इसके बावजूद भी पीडि़त महिला को अदालत से न्याय नहीं मिल पाता है।  किशोरियों के विरूद्ध लगातार बढ़ रहे यौन हिंसा के कारणों की विस्तार से खोजबीन अनिवार्य है। एक तरफ मीडिया में बढ़ते यौन चित्रण, पारिवारिक विखंडन, लचर कानून और न्याय व्यवस्था, ज्यादातर अपराधियों का बाइज्जत बरी हो जाना अपराधियों को बेखौफ बनाती है, मगर फैसले होने में बरसों की देरी और महंगी कानूनी सेवा, चुप रहने को मजबूर पीडि़त युवा स्त्री विरोध-प्रतिरोध कर सकती है, इसलिए भी लड़कियों के साथ बलात्कार की घटना बढ़ रही है। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ या बलात्कार जैसी घिनौनी हरकत करना पुरूष की घृणित मानसिकता का परिचायक एवं समाज के ऊपर कलंक है।
लेखक- जय सिंह
उप-संपादक,
''आधुनिक विप्लव'' हिन्दी मासिक पत्रिका
मोबाइल नं0-9450437630
Blog-   http://jaisingh-apnibaat.blogspot.com