रविवार, 5 अगस्त 2012

सत्ता का नशा

सत्ता का नशा


समाज में कई  प्रकार का नशा है। हर नशा अपने आप में बहुत खास  होता है, जैसे की देश को सुधारने का नशा। आज हर कोई देश को सुधारने की बात करता है, जैसे वह देश सुधारने के लिए पैदा ही हुआ है। मगर खुद सुधरने को कोई तैयार नहीं है।  काम करने का नशा-  की इनके काम करने से ही देश चलेगा। खाकी  वर्दी का नशा- यह खौफ पैदा करने के लिए जरुरी है , यह नशा जब चढ़ता है तो उतरता बड़ी मुश्किल से है, जब तक की मोटी  कमाई  कर ले या किसी को फर्जी रूप से फँसा   ले। धन कुबेर होने का नशा- जब यह नशा परवान चढ़ता है तो तो फिर व्यक्ति ताजमहल और टैतेनिक तक को खरीदने का ख्वाब देखने लगता है। जबकि यह सच्चाई है की वह निस्वार्थ भाव से धन खर्च नहीं करना चाहता है। प्रेम का नशा- इस जूनून में जाने कितने आशिक अपने आप को बर्बाद कर डाले, जाने कितनी सियासते बदल गई। समाज सेवा का नशा- जो दिल की गहराई  से नहीं बल्कि ज्यादातर लोगों द्वारा नाम चमकाने के लिए किया जाता है ।दारू का नशा, भांग का नशा, चरस, अफीम का नशा, शुर्ती, बीड़ी का नशा और जाने इतने सारे नशों  के बीच  में सत्ता का नशा।  और अब हम बात कर रहे है इसी नशे की यानी  सत्ता का नशा। ''सत्ता'' नाम में ही कुछ ऐसा है, जिसे सुनकर ही कुछ -कुछ होने लगता है , चाल में कड़क जाती है, आवाज में खनक जाती है, और दिमाग में एक अलग तरह का सुरूर चढ़ने लगता है
यह सच है की दुनिया का सबसे बड़ा नशा सत्ता में होता है। इसके सामने सारे नशे  फीके है। शराब का नशा शराब पीने के बाद शुरू होता है। पीते ही नशा चढ़ने लगता है और आदमी कुछ  देर तक आय-बाय-साय और जाने क्या-क्या बडबडाने लगता है। और कुछ ही पल के बाद नशा उतर जाने के बाद व्यक्ति को अपने द्वारा किये गये कृत्य याद ही नहीं रहता  है। भाँग का नशा भी पीने के बाद ही सुरु होता है। शराब की वैरैटिया भी बहुत किस्म की है। किसी का नशा बहुत होता है तो किसी का बहुत कम। कोई भी शराब कितनी भी स्ट्रोंग क्यों हो, बोतल या गिलास पकड़ने से नशा कभी नहीं करती, जब तक शराब गले में नीचे नहीं उतरती, तब का कोई असर नहीं दिखाती है। ऐसे ही कई प्रकार के नशे पाउचों में या पुडियों में  होती है। हिरोइन हो या चरस ये भी जब तक गले के नीचे  नहीं जाती अपना असर नहीं दिखाती है। किन्तु ये सब नशे सत्ता मद की नशे के आगे बेकार ही है, क्योकि  सत्ता का नशा की बात ही कुछ निराली है।  हवा में थोडा सा सत्ता का गंध आते ही अपना असर दिखाना सुरु कर देती है।
पुरानी  कहावत भी है -
कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय
या खावै बौराय जग,वा  पावै बौराय ।।

सत्ता का नशा कोई आज का नया नशा नहीं है बल्कि प्राचीन काल से चला रहा है। सत्ता के नशे का तो इतिहास गवाह है कि इस सत्ता के नशे ने जाने कितने लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। शाहजहाँ ने भी मजदूरों के हाथ कटवाकर बेकार कर दिया। सत्ता के मद में  जाने कितने जानवरों के सिर काटे गए ,कितने आखेटो के शिकार हुए , कितने इन्सान मारे गए, कितनो की बलि चढ़ाई गई इतिहास गवाह है की सत्ता को बनाये रखने के लिए समय-समय पर युद्ध होते रहे है। चाहे वह वाक युद्ध ही क्यों हो। दूसरों को भूखा देखने का नशा अपने आप को बड़ा ही सुकून देता है। दुसरे की थाली की रोटी मुझे ही चाहिए भले ही फेकनी ही क्यों पड़े ताकत का नशा भी बड़ा सुकून देने वाला होता है।छीनने में अपनी ताकत का एहसास होता है। इस तरह के लोगों का सबसे बड़ा दुःख यह नहीं की वह अपने दुःख से दुखी है। बल्कि सबसे बड़ा दुख यह है की दूसरा सुखी क्यों है।
सत्ता का नशा भी कुछ इस प्रकार है। जिसके पास सत्ता है वह उसका प्रयोग करेगा ही। चाहे वह करे या सही। जैसे आजकल उत्तर प्रदेश में अखिलेश की सत्ता का नशा भी ऐसा ही कुछ है जो आजकल अपने पावर का उपयोग जिलों के नाम बदलने एवं फर्जी जाँच में लगा रहे है। सत्ता के नशे में आकर गलत निर्णय लेकर सरकार  को भी बदनाम कर रहे है। सत्ता के  बाहर थे तब जाने कितने वादे किये जनता से परन्तु वे सारे वादे अब झूठी साबित हो रहे है। बेरोजगारी भत्ता, लैपटॉप , रिक्शा जाने कितने ऐसे वादे किये थे। सत्ता में आते ही सब  बेकार लगने लगा है।
सत्ता का नशा इतना चढ़ गया है की जनता को किये गए वादों को भुलाकर     पार्को, स्मारकों तथा चौराहों पे  मूर्तियों की तोड़-फोड़ में लगे हुए है। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की मूर्ति को तोड़ना सत्ता का नशा ही है।
जिसके पास सत्ता है, वह उसका प्रयोग करेगा ही और सच्चाई भी यही है।चाहे वह उसका प्रयोग अच्छाई के लिए करे या बुराई के लिए। सुख प्राप्त करने के लिए दुसरे का गला क्यों घोटा जाय। अपने से कमजोर लोगो को दुःख पहुचाकर ही इन लोगो को सुख मिलता है। जबकि कबीर दास जी ने भी कहा था-
दुर्बल को सताइये, जाकी मोटी हाय।
 मरी  खाल की साँस से, लौह भस्म हो जाय।।
 कुर्सी पर विराजमान लोग यही तो करते है। अपने अधिकारों का दुरूपयोग और है। और इसमें कुर्सी पर बैठे लोगों को बड़ी ही तसल्ली,संतुष्टि ,शान्ति  और राहत मिलती है। जब सत्तासीन व्यक्ति सत्ता विहीन व्यक्ति को दीन और निरीह हालात में देखता है तब, उसे बड़ी आनंद की प्राप्ति होती है। कुछ सुख ऐसे होते है, जो  पैसे के बल पर नहीं ख़रीदे जा सकते है और ही इन सुखों को प्रत्येक व्यक्ति भोग सकता  है, क्योकि प्रत्येक व्यक्ति की मानसिकता एक सी नहीं होती है। ऐसा नहीं की सत्ता का नशा उतरता नहीं। जैसे शराब का नशा उतरता है वैसे ही सत्ता का नशा भी उतरता है। जिस प्रकार शराब का नशा उतरने के साथ ही अनिद्रा, सिर दर्द , चिडचिडापन ,थकान का उपहार देकर जाता है, उसी प्रकार जब सत्ता का नशा उतरता है तो चिडचिडापन, डिप्रेशन, पागलपन जैसी बीमारी देकर जाता है, क्योकि जो चमचा वर्ग स्वार्थ के लिए कुर्सी से चिपका रहता था, वह सत्ता के जाते ही दूर छिटक जाता है। वह अब नये आने वाले की चमचागिरी शुरू कर देता है। 
आज भी समाज में आपको ऐसे नेता, अभिनेता, प्रशासनिक वर्ग इत्यादि लोग मिल जायेगे, जब तक वे सत्ता में रहे, अपनो से कटे रहे, अब अपने उनसे कटे हुए है। इसलिए अच्छा है की व्यक्ति समय रहते ही संभल जाय।अहंकार से दूर रहे और शुरू से ही अच्छा व्यक्ति बने रहने का प्रयास करे स्वार्थी और चमचा टाईप के लोगो से दूर रहे, तभी उनकी सोच स्वस्थ रहेगी ।और तभी बनेगा उत्तम प्रदेश और देश

                                                                        आपका- जय सिंह 
                                                                                9462939936