बुधवार, 19 अप्रैल 2023

चाकली अइलम्मा

यह मेरी जमीन है, यह मेरी फसल है। है किसी में हिम्मत जो मेरी फसल और मेरी जमीन ले ले,  यह तभी संभव है जब मैं मर जाऊं-- चाकली अइलम्मा

 आज एक ऐसी शख्सियत का जन्मदिन 10 सितंबर, 1919 और पुण्यतिथि 10 सितंबर, 1985 दोनों है, जिसने आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले पालाकुर्थी गांव में सामंतों, जमीदारों और निज़ाम सरकार की संगीनों से बेख़ौफ़ न केवल काश्तकारों और खेतिहर मजदूरों के मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ी अपितु महिला समानता के लिए भी लड़ाई लड़ी। 

उसने अपने परंपरागत पेशे वाली जाति का नाम ही उपनाम के तौर पर लगाना शुरू किया और एक सशक्त दावे के रूप में प्रचलित किया। वह पहली ऐसी महिला थीं जिन्होंने अपनी जाति को शोषण और दमन के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया। वही एक ऐसी क्रांतिकारी महिला थीं जिन्होंने तेलंगाना शस्त्र संघर्ष में न केवल उत्पीड़ित महिलाओं अपितु उत्पीड़ित पुरुषों के लिए भी जमीदारों और रूलिंग क्लास के दमन के खिलाफ खड़े होने का एक प्लेटफार्म तैयार किया। उन्होंने सामंतों और जमीदारों को खुली चुनौती दी जिससे प्रभावित और प्रेरित होकर बहुत सी महिलाएं अपनी जमीन और प्रतिष्ठा के लिए तन कर खड़ी हो गईं। 

वह क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी वीरांगना थीं चीटियाला अइलम्मा। चीटियाला अइलम्मा जो कि चाकली अइलम्मा के नाम से भी जानी जाती हैं। चाकली अइलम्मा का जन्म आज से 100 वर्ष पूर्व 10 सितंबरए 1919 को आंध्र प्रदेश के वारंगल, रायपार्थी मंडल, जिले के कृष्णपुरम गांव में हुआ था । उनका परिवार उन दिनों जातिगत संरचना पर आधारित परंपरागत पेशे से ही अपना जीविकोपार्जन करता था। आंध्र प्रदेश और अब तेलंगाना में भी  धोबियों को श्चाकलीश् के नाम से जाना जाता है। चाकली शब्द की उत्पत्ति चकला शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ होता है सेवा करना। 

इसी चाकली शब्द के संदर्भ में मशहूर लेखक व प्रसिद्ध दलित बहुजन चिंतक कांचा अइलैय्या ने पुस्तक  POST- HINDU INDIA में Subaltern Feminist (सबाल्टर्न नारीवादी) की संज्ञा देते हुए लिखा ही कि "धोबी/चाकली" शूद्र समाज की पहली सीढ़ी हुए जिन्हें बावजूद उनकी अपनी योग्यता के मूर्ख का खिताब दिया। जबकि चकालियों का ज्ञानधारा वह प्राथमिक आधार है जिस पर पूरे शूद्र समाज को गर्व करना चाहिए। तेलगू भाषा में धोबीघाट को "चाकी रेवु" कहा जाता है। 

जाति को उपनाम के तौर पर लगाने का प्रचलन नया नहीं है, क्योंकि जाति को उपनाम में लगाने से गुलामी का इतिहास सामने आता है और इसी गुलामी के इतिहास को सामने लाने के लिए चाकली अइलम्मा ने विरोध स्वरूप आपना उपनाम अपने नाम से पहले लगाया और उच्च जाति के सामन्तों और निजाम सरकार के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। उन्होंने इस उपनाम को उस दौर में इसलिए भी लगाया कि उपनाम हिंसा के इतिहास का उद्घाटन करता है और इंगित करता है कि उनके समुदाय को उच्च जातियों के उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। जैसे आज के दौर में भी सामंती मानसिकता के लोगों को निम्न जातियों या पिछड़े वर्गों को अपने को दलित कहना या उनके द्वारा जाति को उपनाम के तौर पर प्रयोग करना खटकता है वैसा ही उस दौर में भी थाए लेकिन सामंतों और जमीदारों की परवाह न करते हुए अइलम्मा ने चाकली शब्द का प्रयोग किया और अपने आपको सशक्त महिला के रूप में प्रस्तुत किया। 

चाकली अइलम्मा का विवाह चीटियाला नारसैयाह से हुआ उनके 5 बच्चे (4 पुत्र और एक पुत्री सोमू नरसम्मा) हुए। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण जीविकोपार्जन हेतु वे अपना कपड़े धोने का परंपरागत पेशा ही करते थे अर्थात सामंती जमीदारों की सेवा करते थे। अइलम्मा ने एक सामंत कोंडाला राव रेड्डी  से 4 एकड़ जमीन पत्ते पर लेकर खेती करनी शुरू कर दी। यह सीधे तौर पर सामंत, जमीदारों और निजाम सरकार को चुनौती देने जैसा ही था, इसलिए उन्हें यह बर्दाश्त नहीं हुआ और निम्न जाति की महिला द्वारा ऐसा करना उनको नागवार गुजरा जिसे उन्होंने अपना अपमान समझा। जमीदारों और निजाम सरकार ने मिलकर उन्हें प्रताड़ित करना शुरू कर दिया ।  जब वे इतने पर भी नहीं मानीं तो उनके पति और बेटे को फर्जी मुकदमें में फंसाकर जेल भेजवा दिया। चाकली अइलम्मा घबराने वाली महिला नहीं थीं। वह अदालत से मुकदमा जीतकर पति और बेटे को छुड़ा लायीं। जमीदार ने अपने आदमियों की सहायता से उनका घर जला दियाए उनके पति की नृसंशता पूर्वक हत्या कर दी और उनकी पुत्री के साथ सामूहिक बलात्कार किया। अइलम्मा इसे सहन न कर सकीं और वह आंध्र महासभा व सीपीआई " एम" की सदस्य भी थीं, जिनके सदस्यों की सहायता से अपनी जमीन जिसे कि रामचन्द्र राव रेड्डी नाम के जमीदार ने अपने नाम स्थानांतरित करवा ली थी, और फसल कटवा ली। निजाम सरकार जमीदार के समर्थन में ही काम कर रही थी। वैसे भी राज्य हमेशा से दमनकारी रहा है। 

पति की मृत्यु के बाद अइलम्मा ने अपना रोष और गुस्सा दिखाने के लिए कपड़ा पीटने की मुंगरी (उनकी मूर्ति में उनके दाहिने हाथ में मुंगरी देखा जा सकता है) उठा लिया। उनका विरोध बहुत महत्वपूर्ण था। यह दासप्रथा के खिलाफ एक ऐतिहासिक संघर्ष थाए जिसे बहुजन महिला संघर्ष के रूप में याद किया जाता है। उनका घर सामन्तवादी जमीदारों की गतिविधियों के खिलाफ संघर्ष करने वालों का केन्द्र बन गया था।

उनका जमीदारों के खिलाफ रचनात्मक संघर्ष और दास प्रथा के खिलाफ लड़ने वाले के विचार ने न्याय के रास्ते को खोल दिया। 

वह 1947 में तेलंगाना सशस्त्र आंदोलन की सबसे महान और प्रेरणादायक नेता थीं। उनकी विद्रोही प्रेरणा से ही बहुत सी महिलाओंए जिनकी जमीन जमीदारों ने कब्जा कर ली थी और उनके पतियों को मार रहे थे तथा अपने साथ यौनिक हमलों से तंग आकर निजाम की सेना और जमीदारों से लड़ने के लिए हथियार उठा लिया। उनके सामने अब एक ही रास्ता बचा था कि वे खुद हथियार उठाएं और अपने परिवार की रक्षा करें और अगली पीढ़ी की सुरक्षा करें। 

वंचितों के हकों की रक्षा करने, अन्य महिलाओं को जमीदारों और निजाम सरकार के बर्बरतापूर्ण कृत्यों से मुक्त होने हेतु रचनात्मक आंदोलनों में सहभागी बनने वाली और महिलाओं की समानता की पक्षधर वीरांगना चाकली अइलम्मा की मृत्यु 10 सितंबरए 1985 को पालकुर्थीए वारंगल (तेलंगाना) में हो गई। 

उनका संघर्ष एक बुद्धिवादी आंदोलन था। उन्होंने उच्च जातियों की महिलाओं की सर्वोच्चता पर भी सवाल खड़ा किया क्योंकि वह भी निम्न जाति की महिलाओं का दास के रूप में शोषण करती थीं और यह बताया कि जाति और वर्ग जेंडर के भीतर हर पल एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। 

उनका यह संघर्ष केवल सामंतवाद को खत्म करने वाला संघर्ष नहीं था अपितु यह संघर्ष लिंग समानता ;जेंडर इक्वालिटीद्ध और महिलाओं में महिला की समानता के लिए भी था। 

चाकली अइलम्मा के संघर्षों को जाति प्रथा के खिलाफ संघर्ष और स्त्रीवादी संघर्ष के नजरिए से देखा जाना चाहिए जो अभी तक नहीं हुआ। उन्होंने न केवल भोजन के लिए लड़ाई लड़ी अपितु महिलाओं की समानता और सम्मान की लड़ाई भी लड़ी। वह जहां एक तरफ सामन्तों के खिलाफ संघर्षरत थीं वहीं दूसरी ओर पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ भी लड़ रही थीं। उस दौर में जब भारत ब्रिटिश शासकों के आधीन था चाकली अइलम्मा सामान्य अपराधों कत्लेआम, सामूहिक बलात्कार, यौनिक हमले और सांस्थानिक शोषण  के खिलाफ बिना भयभीत हुए लड़ीं।

उनके द्वारा किए गए उल्लेखनीय योगदान के लिए उनकी मूर्ति वारंगल, हैदराबाद में लगाई गई। 

वह तेलंगाना विद्रोह और स्वतंत्रता आंदोलन में एक क्रांतिकारी नेता के रूप में सहभागी हुईं लेकिन अफसोस कि इतिहास की पुस्तकों से उनका योगदान नदारद है। 

आज जो लोग वंचित तबकों को हीन समझते हैं और उन्हें पास रखने, बैठाने में संकोच करते हैं या जिन्हें शर्म आती है, उन्हें वीरांगना चाकली अइलम्मा से प्रेरणा लेनी चाहिए कि उन्होंने उपनाम को सामंती जमीदारों के खिलाफ लड़ने में विरोध के तौर पर पहले प्रयोग किया। एक ऐसी महिलाए जिसने जमीदारों और निजाम सरकार के छक्के छुड़ा दिए हों और बिना किसी औपचारिक शिक्षा ग्रहण किए महिला अधिकारोंए महिला सम्मान और समानता के लिए अपना घर, परिवार और अपना जीवन न्योछावर कर पितृसत्तात्मक व्यवस्था को कड़ी चुनौती दी होए के जयंती और पुण्यतिथि के अवसर पर श्रद्धासुमन 💐💐💐अर्पित कर नमन करते हैं।    @डॉक्टर नरेन्द्र दिवाकर 

                              
प्रस्तुति- जय सिंह


माँ के पैर का निशान ...........

कुछ दिन पहले एक परिचित के घर गया था। जिस वक्त घर में मैं बैठा था, उनकी मेड घर की सफाई कर रही थी। 
मैं ड्राइंग रूम में बैठा थाए मेरे परिचित फोन पर किसी से बात कर रहे थे। उनकी पत्नी चाय बना रही थीं। मेरी नज़र सामने वाले कमरे तक गईए जहां मेड फर्श पर पोछा लगा रही थी। 
अचानक मेरे कानों में आवाज़ आई। 

बुढ़िया अभी ज़मीन पर पोछा लगा है....... 

नीचे पांव मत उतारना। मैं बार.बार यही नहीं करती रहूंगी।

मैंने अपने परिचित से पूछा,  "माँ " कमरे में हैं क्या ?

हाँ

जब तक चाय बन रही है, मैं मां से मिल लेता हूं। मैंने बोला ........ 

हा....हा .....। लेकिन रुकिए, अभी.अभी शायद पोछा लगा है,  सूख जाए, फिर जाइएगा । 

क्यों  ! यदि फर्श गीला है तो,  मेड दुबारा लगाएगी। नहीं लगाएगी तो थोड़े निशान रह जाएंगे फर्श पर। क्या फर्क पड़ेगा ?

परिचित थोड़ा हैरान हुए । भैया ऐसा क्यों कह रहे हैं ?

तब तक मैं कमरे में चला गया था। गीले फर्श पर पांव के खूब निशान उकेरता हुआ। 

मैं मां के पास गया। मैंने उनके पांव छुए और फिर उनसे कहा कि चलिए आप भी ड्राइंग रूम में,  वहां साथ बैठ कर चाय पीते हैं। चाय बन रही है। भाभी रसोई में चाय बना रही हैं। 

मैंने इतना ही कहा था। मां एकदम घबरा गईं। 

अरे नहीं,  अभी फर्श पर पांव नहीं रखना है। फर्श गीला है न,  मेरे पांव के निशान पड़ जाएंगे। 

पाव के निशान पड़ जाएंगे,  वाह!  फिर तो मैं उनकी तस्वीर उतार कर बड़ा करवा कर फ्रेम में लगाऊंगा। आप चलिए तो सही।

पर मां बिस्तर से नीचे नहीं उतर रही थीं। उन्होंने कहा कि तुम चाय पी लो बेटा।

तब तक मेरे परिचित भी मां के कमरे तक आ गए थे। 

उन्होंने मुझसे कहा कि मां सुबह चाय पी चुकी है। आप आइए भैया ।

नहीं।  मां के साथ मैं यहीं कमरे में चाय लूंगा।

चमकते हुए टाइल्स पर मेरे जूते के निशान बयां कर रहे थे कि मैंने जानबूझ कर कुछ निशान छोड़े हैं। वो समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर मैंने ऐसा किया ही क्यों ?

उन्होंने मुझसे तो कुछ नहीं कहा, लेकिन मेड को उन्होंने आवाज़ दी।  "बबीता" जरा इधर आना। इधर भैया के पांव के निशान पड़ गए हैं,  उन्हें साफ कर देना।

बबीता ने गीला पोछा फर्श पर लगाया। जैसे ही फर्श की दुबारा सफाई हुई मैं फिर खड़ा होकर उस पर चल पड़ा। दुबारा निशान पड़ गए। 

अब बबिता हैरान थी। मेरे परिचित भी। तब तक उनकी पत्नी भी कमरे में आ चुकी थीं।

उन्होंने कहा-  भैया आइए चाय रखी है। 

मैंने परिचित की पत्नी से कहा कि  "बुढ़िया"  के लिए चाय यहीं दे दीजिए।

मेरे परिचित ने मेरी ओर देखा। 

मैंने कहा कि हैरान मत होइए। 

वो चुप थे। 

मैंने कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि आप लोग मां को प्यार से बुढ़िया बुलाते हैं। 

मेड वहीं खड़ी थी। सन्न। परिचित की पत्नी वहीं खड़ी थी, सन्न। 

परिचित ने पूछा,  क्या  हुआ भैया ?

हुआ कुछ नहीं। मैंने खुद सुना है कि आपकी बबिता मां को बुढ़िया कह कर बुला रही थी। उसने मां को बिस्तर से उतरने से धमकाया भी था। यकीनन काम वाली ने मां को बुढ़िया पहली बार नहीं कहा होगा। बल्कि वो कह भी नहीं सकती उन्हें बुढ़िया। उसने सुना होगा। बेटे के मुंह से। बहू के मुंह से। बिना सुने वो नहीं कह सकती थी। 

जाहिर है आप लोग प्यार से मां को इसी नाम से बुलाते होगे, तभी तो उनसे कहा।

पल भर के लिए धरती हिलने लगी थी। गीले फर्श पर हज़ारों निशान उभर आए थे। 

मेरे परिचित के छोटे.छोटे पांव के निशान वहां उभरे हुए हैं। बच्चा भाग रहा है। मां खेल रही है बच्चे के साथ.साथ। एक निशान, दो निशान, निशान ही निशान। मां खुश हो रही है। बेटे के पांव देख कर कह रही है, देखो तो इसके पांव के निशान। बेटा इधर से उधर दौड़ रहा था। दौड़ता जा रहा था, पूरे घर में। 

बुढ़िया रो रही थी। बहू की आंखें झुकी हुई थीं। बबिता चुप थी। 

"भैया" गलती हो गई। अब नहीं होगा ऐसा। भैया बहुत बड़ी भूल थी मेरी।

मेरे परिचित अपनी आंखें पोंछ रहे थे। 

मैं चल पड़ा। सिर्फ इतना कह कर कि आँखें ही पोंछनी चाहिए। उस फर्श को तो चूम लेना चाहिए जहां मां के पांव के निशान पड़े हों। माँ का सम्मान बिना किसी लोभ-लालच मे नहीं बल्कि अपनी जीवन को सुधारने के लिए करना चाहिये ।  साभार-संजय सिन्हा


प्रस्तुति

जय सिंह

मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

नई सामाजिक बीमारी

 ✍️रिसोर्ट मे शादियां ! 

नई सामाजिक बीमारी  

हम बात करेंगे शादी समारोहो में होने वाली भारी.भरकम व्यवस्थाओं और उसमें खर्च होने वाले अथाह धनराशि के दुरुपयोग की!

सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते है शादी समारोह हेतु यह सब बेकार हो चुके हैं ।

कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मे  शादियां होने की परंपरा चली, परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है!

अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादियाँ   होने लगी है!

शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है

आगंतुक और मेहमान सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं।

इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं!

और सच मानिए समारोह के बहुत से शहरी व बाद मे बने धनवान मेजबान की दिली इच्छा भी यही होती है कि सिर्फ कार वाले मेहमान ही रिसेप्शन हॉल में आए!!

और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है 

दो-तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी है

किसको सिर्फ लेडीस संगीत में बुलाना है !

किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है !

किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है !

और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है!!

इस आमंत्रण में अपनापन की भावना खत्म हो चुकी है!

सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है!!

महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं!

मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं!

हल्दी लगाने के लिए भी एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं!

ब्यूटी पार्लर को दो.तीन दिन के लिए बुक कर दिया जाता है !

प्रत्येक परिवार अलग.अलग कमरे में ठहरते हैं जिसके कारण दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है!!

क्योंकि सब अमीर हो गए हैं, पैसे वाले हो गए हैं!

मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है!

रस्म अदायगी पर मोबाइलो से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं !

सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं!

और यही अमीरीयत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकता है !

कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं

परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता !

वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने अपने कमरो में ही गुजार देते हैं!!

विवाह समारोह के मुख्य स्वागत द्वार पर नव दंपत्ति के विवाह पूर्व आलिंगन वाली तस्वीरें, हमारी विकृत हो चुकी संस्कृति पर सीधा तमाचा मारते हुए दिखती हैं!

अंदर एंट्री गेट पर आदम कद  स्क्रीन पर नव दंपति के विवाह पूर्व आउटडोर शूटिंग के दौरान फिल्माए गए फिल्मी तर्ज पर गीत संगीत और नृत्य चल रहे होते हैं!

आशीर्वाद समारोह तो कहीं से भी नहीं लगते है

पूरा परिवार प्रसन्न होता है अपने बच्चों के इन करतूतों पर पास में लगा मंच जहां नव दंपत्ति लाइव गल . बहियाँ करते हुए मदमस्त दोस्तों और मित्रों के साथ अपने परिवार से मिले संस्कारों का प्रदर्शन करते हुए दिखते हैं!

मंच पर वर.वधू के नाम का बैनर लगा हुआ होता है!

अब वर वधू के नाम के आगे कहीं भी चि० और सौ०का० नहीं लिखा जाता क्योंकि अब इन शब्दों का कोई सम्मान बचा ही नहीं

इसलिए अंग्रेजी में लिखे जाने लगे है

हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा ऐसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है

मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है 

आपका पैसा है, आपने कमाया है,

आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं,

पर किसी दूसरे की देखा देखी नही!

कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा!

जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा

4 से  5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है !

और आप कितना ही बेहतर करें 

लोग जब तक रिसेप्शन हॉल में है तब तक आप की तारीफ करेंगे!

और लिफाफा दे कर आपके द्वारा की गई आव भगत की कीमत अदा करके निकल जाएंगे!

मेरा युवा वर्ग से भी अनुरोध है कि ....................

अपने परिवार की हैसियत से ज्यादा खर्चा करने के लिए अपने परिजनों को मजबूर न करें!

आपके इस महत्वपूर्ण दिन के लिए 

आपके माता.पिता ने कितने समर्पण किए हैं यह आपको खुद माता.पिता बनने के उपरांत ही पता लगेगा!

दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए!

अपना दांपत्य जीवन सर उठा केए स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए ! 

✒️✅🙏  जय सिंह (आईआईएस) 

गांठ बांध लीजिए..........

 गांठ बांध लीजिए..........

’🪢 कन्याओं का विवाह 21 से 25 वे वर्ष तक, 
और लड़कों का विवाह 25 से 29वें वर्ष की आयु तक हर स्थिति में हो जाना चाहिए !’

’🪢 फ्लैट न लेकर जमीन खरीदो, और उस पर अपना घर बनाओ! वरना आपकी संतानों का भविष्य पिंजरे के पंछी की तरह हो जाएगा’

’🪢 नयी युवा पीढ़ी को कम से कम दो संतानों को जन्म देने के लिए प्रेरित करें !’

’🪢 गांव से नाता जोड़ कर रखें ! और गांव की पैतृक सम्पत्ति, और वहां के लोगों से नाता, जोड़कर रखें !’

’🪢 अपनी संतानों को अपने धर्म की शिक्षा अवश्य दें, और उनके मानसिक व शारीरिक विकास पर अवश्य ध्यान दें !’

’🪢 किसी भी और आतंकवादी प्रवृत्ति के व्यक्ति से सामान लेने.देने, व्यवहार करने से यथासंभव बचें !’

’🪢 घर में बागवानी करने की आदत डालें, और यदि पर्याप्त जगह है, तो देशी गाय पालें।’ 

’🔖 अपना जन्मदिन, दीपावली, विजयादशमी, अंबेडकर जयंती, बुद्ध पुर्णिमा, मकर संक्रांति, आदि जितने भी  त्यौहार आयें, उन्हें आफिस कार्य  से छुट्टी लेकर सपरिवार मनाये।’ 

🪢 ’प्रात: काल 5 या 5:30 बजे उठ जाएं, और रात्रि को 10 बजे तक सोने का नियम बनाएं ! सोने से पहले आधा गिलास पानी अवश्य पिये (हार्ट अटैक की संभावना घटती है)’

’🪢 यदि आपकी कोई एक संतान पढ़ाई में असक्षम है, तो उसको कोई भी हुनर स्किल  वाला ज्ञान जरूर दें !’

’🪢 आपकी प्रत्येक संतान को कम से कम तीन फोन नंबर स्मरण होने चाहिएए और आपको भी!’

’🪢 जब भी परिवार व समाज के किसी कार्यक्रम में जाएंए तो अपनी संतानों को भी ले जाएं ! इससे उनका मानसिक विकास सशक्त होगा !’

’🪢 परिवार के साथ मिल बैठकर भोजन करने का प्रयास करेंए और भोजन करते समय मोबाइल फोन और टीवी बंद कर लें !’

’🪢 अपनी संतानों को बालीवुड की कचरा फिल्मों से बचाएं और प्रेरणादायक फिल्में दिखाएं !’

’🪢 जंक फूड और फास्ट फूड से बचें !’

’🪢 सांयकाल के समय कम से कम 10 मिनट  संगीत सुने,  बजाएं !’

’🪢 दिखावे के चक्कर में पड़कर, व्यर्थ का खर्चा न करें !’

’🪢 दो किलोमीटर तक जाना हो, तो पैदल जाएं, या साईकिल का प्रयोग करें !’

’🪢 अपनी संतानों के मन में किसी भी प्रकार के नशे - गुटखा, तंबाखू, बीड़ी, सिगरेट, दारू....... के विरुद्ध चेतना उत्पन्न करें, तथा उसे विकसित करें !’

’🪢 सदैव सात्विक भोजन ग्रहण करें, अपने भोजन मे फाइबर युक्त भोजन ज्यादा  ग्रहण करें ! !’

’🪢 अपने आंगन में तुलसी  और गिलोय का पौधा अवश्य लगायें, व नित्य प्रति दिन पूजा, दीपदान अवश्य करें !’

’🪢 अपने घर पर एक हथियार अवश्य रखें, ओर उसे चलाने का निरन्तर हवा में अकेले प्रयास करते रहें, ताकि विपत्ति के समय प्रयोग कर सकें ! जैसे.लाठी, हॉकी, गुप्ती, तलवार, भाला, त्रिशूल व बंदूक,पिस्तौल  लाइसेंस के साथ !’

’🪢 घर में पुत्र का जन्म हो या कन्या का, खुशी बराबरी से मनाएँ ! दोनों जरूरी है ! अगर बेटियाँ नहीं होगी तो परिवार व समाज को आगे बढाने वाली बहुएँ कहाँ से आएगी और बेटे नहीं होंगे तो परिवार समाज व देश की रक्षा कौन करेगा !’

प्रस्तुति- जय सिंह 


पुरुष की प्रतिष्ठा उसकी स्त्री तय करती है

 पुरुष की प्रतिष्ठा उसकी स्त्री तय करती है, और स्त्री का सौंदर्य उसका पुरुष ...........

कुछ तस्वीरें बहुत सुन्दर होती हैं। इतनी सुन्दर कि उन पर मोटी किताब लिख दी जाय फिर भी बात खत्म न होण्ण्ण् इस तस्वीर को ही देखियेए जाने कितने अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर हैं इस तस्वीर में...........

स्त्रियों के पांव बहुत सुन्दर होते हैं। इतने सुन्दर, कि सभ्यता उन पांवों की महावर वाली छाप अपने आँचल में सँजो कर रखती है। पुरुषों के पांव उतने सुन्दर नहीं होते............उभरी हुई नशें, निकली हुई हड्डियां, फ़टी हुई एड़ियां,  ठीक वैसे ही,  जैसे मोर के पांव सुन्दर नहीं होते..

मैं ठेंठ देहाती की तरह सोचता हूँ। एक आम देहाती पुरुष अपने पैरों को केवल इसलिए कुरूप बना लेता है, ताकि उसकी स्त्री अपने सुन्दर पैरों में मेहंदी रचा सके। स्त्री के पांव में बिवाई न फटे, इसी का जतन करते करते उसके पांव में बिवाई फट जाती है......... 

स्त्री नख से शिख तक सुन्दर होती हैए पुरुष नहीं। पुरुष का सौंदर्य उसके चेहरे पर तब उभरता है जब वह अपने साहस के बल पर विपरीत परिस्थितियों को भी अनुकूल कर लेता है। 

ईश्वर ने गढ़ते समय पुरुष और स्त्री की लंबाई में थोड़ा सा अंतर कर दिया। पुरुष लंबे हो गएए स्त्री छोटी गयी। इस अंतर को पाटने के दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो स्त्री पांव उचका कर बड़ी हो जायए या पुरुष माथा झुका कर छोटा हो जाय........ .....बाबा लिखते हैं,  जब राजा जनक के दरबार में स्वयम्बर के समय माता भगवान राम को वरमाला पहनाने आयीं,  तो प्रभु उनसे ऊंचे निकले। माता को उचकना पड़ता, पर प्रभु ने स्वयं ही सर झुका लिया। दोनो बराबर हो गए.................. 

वहीं से तो सीखते हैं हम सब कुछ, स्त्री पुरुष सम्बन्धों में यदि प्रेम है, समर्पण है, सम्मान है, तो बड़े से बड़े अंतर को भी थोड़ा सा उचक कर या सर नवा कर पाट दिया जा सकता है। 

दर असल सम्बन्धों में सत्ता देह के अनुपात की नहीं होती। दो व्यक्तियों के बीच बराबरी न सौंदर्य के आधार पर हो सकती है,  न शारीरिक शक्ति के आधार पर...........  बस सम्वेदनाओं में समानता हो तो दोनों बराबर हो जाते हैं। सियाराम के सौंदर्य की बात तो कवियों की कल्पना से तय होती रही है,  तत्व यह है कि वियोग के दिनों में वन वन भटक कर भी राम हर क्षण सीता के रहेए और स्वर्ण लंका की वाटिका में रह कर भी सीता हर क्षण बस राम की रहीं............  दोनों की सम्वेदना समान थी,  सो दोनो सदैव बराबर रहे..................

गांव के बुजुर्ग कहते हैं,  पुरुष की प्रतिष्ठा उसकी स्त्री तय करती है और स्त्री का सौंदर्य उसका पुरुष.... दोनों के बीच समर्पण हो तभी उनका संसार सुन्दर होता है।  वैसे सौंदर्य की परिभाषा में तनिक ढील दें तो मनुष्य के सबसे सुंदर अंग उसके पांव ही होते हैं। इतने सुंदरए कि उन्हें पूजा जाता है।

प्रस्तुति- जय सिंह