गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

व्यंग ------- नेता जी में तो कुछ बात है




उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के संग्राम में रण भेदी फूंक रहे राजनीतिक दलों में नए खून को अपनी तरफ करने एवं दूसरे पार्टी में सेंध लगाने की ललक पैदा हो गर्इ है। और समय देख कर एक दूसरे पार्टी के दिग्गज भ्रष्टाचारी नेताओं को जातिय वोट के लिए अपने दल में शामिल करने का खेल बडी उमंग के साथ खेल रहे है।
बात उन दिनो की है जब बाबू सिंह कुशवाहा गा रहे थे-+++ + + + + + + + +  तेरी दूनिया से हो मजबूर चला - - - - मै बहुत दूर - - - बहुत दूर चला। यह गाना वह बसपा से निकलने के बाद मायावती को संबोधित होकर गा रहे थे।
बाबू सिंह कुशवाहा के बोल मेरे संपादक जी के कान में पडे। उन्होने मुझे फौरन बुलाया और बोले  बेटा निकल जाओ लखनऊ के लिए
क्यों और किस काम के लिए निकल जाऊ लखनऊ के लिए  मेरे दिमाग में यही बातें बार बार प्रश्न कर रही थी यह बात शायद संपादक जी ही समझ रहे थे इसलिए उन्होने मुझे अपना मंतव्य बताया बडे बेआबरू होकर निकले है बाबू सिंह कुशवाहा मायावती के कूचे से- - - घाव हरे है उनंहे जाकर कुरेद दो। अब मै समझ गया था कि संपादक जी क्या चाहते है।
मैने यह सुनकर तेजी से दौड लगाया ओर पहुंच गया कुशवाहा के सामने। वह उदासी के बादों से घिरे थे- दोनो हाथों के बीच छिपा चेहरा चेहरे पर खामोशी। उस खामोशी को मैने हटाने की कोशिश की हैलो भूतपूर्व मंत्री सर !  मार्इ सेल्फ जय फ्राम आधुनिक विप्लव पत्रिका।
वाकर्इ मेरे मुंह से निकले शब्दों ने कमाल कर दिखाया  खामोशी का चीरहरण हो गया। कुशवाहा साहब ने अपने चेहरे पर छाए बादलों को हटाने और मुझे यह अहसास दिलाने की कोशिश की कि कुछ नहीं हुआ है या वह बसपा से निकाले जाने पर बिल्कुल परेशान नही है।
खैर ! मै जानता था कि वह राज नेता से पहले मंत्री विधान सभा परिषद सदस्य एवं पार्टी में मायावती के सबसे करीबी रह चुके है और अच्छी खनन बगैरह भी कर लेते थे सो मैने उन्हे एहसास दिलाया  कि वह छिपाने की कोशिश कर रहे है,  करें और अपना दुखडा--ए--दिल मेरे सामने बेहिचक होकर रख सकते है, आपको बसपा से निकाला गया है या आप खुद निकले
देखिए, जहां मेरा सम्मान हो, जहां मेरे विचारों का सम्मान हो, वहां मै एक सेकेंड नही रूक सकता। पार्टी में मै अपने आपको उत्पीडित महसूस कर रहा था। मेरी उपेंक्षा की जा रही थी, इसलिए मैने पार्टी से निकलने में ही समझदारी समझी।
क्या मायावती जी आपको उत्पीडित या आपकी उपेक्षा कर रही थी!
नही--नही, बहन जी से मुझे कोर्इ शिकायत रही है,  अब है। लेकिन आज के बाद उनसे  शिकायत रहेगी।
पार्टी मायावती जी की है, वह आपकी उपेक्षा नही कर रही थी तो फिर- - -
मैने कहा   कि बहन जी से मुझे कोर्इ शिकायत नही है।
उनके चमचों से शिकायत है।
बहन जी ने आपको जाने से रोका भी तो नही !
नही उन्होने मुझे रोका या नही रोकी, निकाली या मै स्वंय निकला, मुझे इससे कोर्इ मतलब नही। हां फिर मै कहना चाहुगा कि मुझे बहन जी से कोर्इ शिकायत नही है।
प्रेस से निकलते वक्त संपादक जी ने मुझसे कहा था  कि इस वक्त कुशवाहा तैश में है और मायावती के खिलाफ कुछ कुछ आग उगलेगे। मुझे कुशवाहा का मायावती के खिलाफ फडकता हुआ बयान चाहिए। और यहां यह साहब है कि बार--बार एक ही रट लगाए जा रहे है कि मुझे बहन जी से कोर्इ शिकायत नही है समय आने पर बताऊगा हकीकत
खैर ! उन्होने जो बोला, मैने सम्पादक जी को वही पकड़ा दिया। लेकिन उन्होने मेरे कान पकड़ लिए और मुझे मुर्गा बना दिया, तुम्हे मैने लखनऊ क्या यह कूड़ा लेने भेजा था ! मै कुछ बोल सका। किसी तरह बात आर्इ, गर्इ और हो गर्इ। मैने कुशवाहा और सम्पादक जी के दिए जख्मों पर झंडू बाम लगाया- रात गर्इ, बात गर्इ, अब मुझे कुछ याद नही। लेकिन कुछ समय बाद फिर एक लफड़ा हो गया
अबकी रंगनाथ मिश्रा बोले-
हुर्इ यह हमसे नादानी, तेरी महफिल में जा बैठे।
जमीन की खाक होकर, आसमान से दिल गया बैठे।
हुआ खुन--ए--तमन्ना, इसका शिकवा क्या करे तुझसे
कुछ सोचा,  कुछ समझा, जिगर पर तीर खा बैठे।
खबर क्या थी मुलिस्तान--ए--मुहब्बत में भी खतरे है
ज्हां गिरती है बिजली, हम उसी डाल पे जा बैठे।
क्यों अंजाम--ए--उल्फत देखकर आंसू निकल आए
जहां को लूटने वाले खुद अपना घर लुटा बैठे।।
सम्पादक जी ने मुझे फिर बुलाया और फिर कहा
सम्पादक जी ने मुझे फिर बुलाया और फिर कहा- फतेह बहादूर सिंह से मायावती के खिलाफ कोर्इ फडकता बयान ला सकते हो !
मरता क्या करता। सम्पादक जी को कहने का मतलब खुद को कहता होता, तो झक मारकर मैने हा में सिर हिलाया और निकल पड़ा गोरखपुर की ओर। सामने सूखे हुए फूल की शब्दों के छींटे उनके चेहरे पर मारे सर मै लखनऊ  से आपका साक्षात्कार लेने आया हू।
आपको पार्टी से निकाला गया या आप खुद निकले 
हमारा विरोध हरिशंकर तिवारी को लेकर है, जो व्यकित कहता है कि बसपा केवल दलितो की पार्टी है ओर बहन जी बेर्इमान है तो उसके लड़कों के लिए बसपा के दरवाजे कैसे खुल सकते है। तो मैने कहा, यानी अप्रत्यक्ष रूप में आप मायावती जी पर निशाना साध रहे है !
नही-नही मायावती जी से मुझे कोर्इ शिकायत नही है।
तिवारी के सुपुत्रों को बसपा में लाए तो मायावती जी ही  
नही, जहां तक मायावती जी की बात है तो मुझे उनसे कोर्इ शिकायत नही है।
मेरा इतना कहना है कि तिवारी के सुपुत्रों को पार्टी में क्यों लिया गया और उनको टिकट दिया गया और मुझे क्यों नही।
मै उन्हे एक घंटे तक कुरेदता रहा, लेकिन वह मायावती के खिलाफ चूं तक नही बोले। मै सम्पादक जी के पास गया तो वह इस बार भी मरे उपर चिल्लाने लगे।
खैर इन दिनों फिर लफड़ा हो रहा है- चुनाव आयोग मुर्तियों को ढकवाने का निर्देश जारी कर दिया है जिससे बसपा के सभी नेता खफा है और सम्पादक जी की नजर भी पार्टी की मुखिया और चुनाव आयोग के करामात पे है।
तेरा लाख-लाख शुक्र है उपर वाले इस बार सम्पादक जी ने मुझे नही कहा  चुनाव आयोग के अध्यक्ष से मायावती के खिलाफ कोर्इ फड़कता हुआ बयान ला सकते हो  
शायद वह भी समझ गये होगे चुनाव आयोग का भी यही कहना है कि मुझे मायावती से कोर्इ शिकायत नही है।