शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

दलितों के मसीहा : डा0 अम्बेडकर जन्म दिवस


                                   डा0 अम्बेडकर जन्म दिवस
दलितों के मसीहा बाबा साहेब  डा0 भीम राव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल सन् 1891 को महाराष्ट्र प्रान्त के रत्नागिरी जिले के महू गांव में एक अछूत महार जाति में हुआ था। वह अपनी माता-पिता की 14वीं सन्तान थे।  माता का नाम भीमा बाई तथा पिता का नाम रामजी संकपाल था। उन्होंने बाल्यकाल से जीवन पर्यन्त उपेक्षित प्रताड़ित और वर्जित जीवन जीया था। अछूत जगत कष्टों का उन्हें अनुभव था। अतः उन्होंने उच्च से उच्चतम शिक्षा ग्रहण करके दलित और शोषित समुदाय के लोगों के लिए भेदभाव ऊंच-नीच को समाप्त कर भारतीय समाज के दबे कुचले दीन-हीन लोगों के लिए समता पर आधरित सामाजिक न्याय दिलाने हेतु सामाजिक क्रान्ति का उद्घोष किया। बचपन में, स्कूल में, कालेज में, और अमेरिका से पी.एच.डी. की डिग्री हासिल करके स्वदेश लौटने पर भी पग-पग पर उन्हें हिन्दू र्ध्म और समाज के कोढ़ छुआछूत के कटु अनुभवों से रू-ब-रू होना पड़ा बाबा साहेब डा. अम्बेडकर ने उन बेजबान लोगों के लिए संघर्ष किया। जिनका समाज में निम्न से निम्न दर्जा था। करोड़ों लोगों जो सदियों से कट्टर पंथी समाज व्यवस्था के खिलापफ जबान नहीं खोल सकते थे। जिनको किसी तरह का कोई हक और अध्किार न हीं था। सड़क पर चल नहीं सकते थे। अछूतों की परछाई से भी अपवित्रा हो जाते थे। उन्हें सम्मान से जीना सिखाया। डा. अम्बेडकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने दलितों में स्वयं के विकास, आत्म विश्वास जैसी भावनाओं को जाग्रत कर उन्हें अपने अध्किारों के प्रति सचेत किया। उनके नेतृत्व में अछूत प्रथम बार अन्ध् विश्वास, अज्ञानता और गुलामी जैसी व्यवस्थाओं को तिलांजलि देकर संगठित हुए।
डा. अम्बेडकर ने दलित चेतना एवं स्वाभिमान की अलख जगाई। उन्होंने एक बार कहा था कि संघर्ष से मुझे प्रसन्नता होती है भीख मांगने या अपील करने से खोए हुए अध्किारों को प्राप्त नहीं किया जा सकता, उसके लिए निरन्तर संघर्ष करना होता है उन्होंने चेतना और जागरण के तीन मंत्रा दिये। शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो उनकी सीख थी।
दलितों के लिए रोटी से ज्यादा जरूरी शिक्षा है उनके जीवन का आदर्श था, दलित, गरीब और उपेक्षित वर्ग को समानता का दर्जा दिलाना जीवन पर्यन्त सामाजिक असमानता अस्पृश्यता एवं अन्याय के विरू( सामाजिक क्रान्ति का बिगुल बजाकर डा. अम्बेडकर सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत बने। वास्तव में वे एक युग पुरूष थे।
यह घोर विडम्बना है कि आजादी के 63 वर्ष बाद भी दलित जुल्म और उत्पीड़न का शिकार है केन्द्र और राज्यों में सरकारें बदलती रही लेकिन दलितों का, वंचितों का और शोषितों का भाग्य नहीं बदला। प्रतिवर्ष भारत रत्न बाबा साहेब डा. भीम राव अम्बेडकर की जयन्ती समारोह बड़ी ध्ूम-धम से मनाया जाता है। प्रधानमंत्राी और मुख्यमंत्राी उनकी प्रतिभाओं पर पुष्पाहर श्र(ा सुमन के रूप में चढ़ाते हैं। परन्तु आज भी दलित कुभीपाक नरक की यंत्राणा को चुपचाप सहने के लिए अभिशिप्त है। आज कुछ दलित अपनी प्रतिभा के बल पर कलेक्टर भी बन गये हैं। पुलिस अध्ीक्षक भी बन गये हैं कल को चीपफ सेक्रेटरी और आई जी व डीआईजी पुलिस अधिकारी भी बनेंगे। वे विधयक, सांसद मंत्राी और मुख्यमंत्राी भी बन गये हैं और आज प्रतिभा के ध्नी एक दलित राष्ट्र के सर्वोच्च महामहिम राष्ट्रपति के पद पर आसीन हो गये लेकिन बड़े दुःख के साथ कहना पड़ता है कि बहुत कुछ बनकर भी दलितों को घोड़ी चढ़ने से रोका क्यों जाता है कोई ब्राह्मण, कोई राजपूत कोई मनुवादी उसकी घोड़ी की लगाम क्यों थाम लेता है क्यों दलितों के साथ अत्याचार करते हैं। इन यक्ष प्रश्नों का सार्थक उत्तर और न्यायेचित माधन सरकार, समाज आपको, हमको सबको ढूढने पड़ेंगे

बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर जयंती पर आप सभी को ढेर सारी शुभ कामनाएं

                                                         जय सिंह
 डॉ भीम राव अम्बेडकर पी० जी० छात्रावास   हज़रतगंज लखनऊ