शनिवार, 5 जनवरी 2013

उभार की सनक

जय सिंह 

इस लेख को पढ़कर आपको हैरानी हो रही है कि युवा सोच युवा खयालात  यह क्‍या लिख रहा है। लेकिन जनाब यह मैं नहीं हिन्‍दी की बेहद लोकप्रिय पत्रिका इंडिया टूडे अपने नए अंक की कवर स्‍टोरी "उभार की सनक" के साथ उक्‍त पंक्ति को लिख रही है। जो अंक उसने मई महीने के लिए प्रकाशित किया है।
इसको लेकर बुद्धजीवियों व मीडिया खेमे में बहस छिड़ गई कि एक पत्रिका को क्‍या हो गया वो ऐसा क्‍यूं कर रही है। मुझे लगता है कि इसका मूल कारण कंटेंट की कमी और ऊपर से बढ़ता महंगाई का बोझ है। पत्रिका खरीदने से लोग कतराने लगे हैं । ऐसे में भला जॉब खोने का खतरा कोई कैसे मोल ले सकता है I जाहिर सी बात है कि अगर आमदनी नहीं होगी तो जॉब सुरक्षित नहीं रहेगी I हो सकता है कि इस बार इंडिया टूडे ने अपनी गिरती बिक्री को बचाने के लिए इस तरह की भाषा व पोस्‍टर का प्रयोग किया हो।
मगर दूसरी ओर देखें तो शायद इंडिया टूडे कुछ गलत भी नहीं कह रहा I आज सुंदर बनना किसे पसंद नहींI युवा रहना किसकी चाहत नहीं I खुद को सबसे खूबसूरत व युवा दिखाने की होड़ ने लाइफस्‍टाइल दवा बाजार को संभावनाओं से भर दिया I व्यक्ति आज बीमारी से छूटकारा पाने के लिए नहीं I बल्‍कि सुंदर व आकर्षित दिखने के लिए दवाएं खा रहा है। बाजारों में खुबसूरत बनाने की दवाईयों से पटा हुआ है। आज के सारे लड़के एवं लडकीयाँ सुन्दर दिखने के लिए प्रयोग कर रहे है । अगर यह बात सच नहीं तो आए दिन अखबारों में ग्रो ब्रेस्‍ट व मर्दाना ताकत बढ़ाओ जैसे विज्ञापनों का खर्च कहां से निकलता है  अगर वह बिकते नहीं। जवाब तो सब के पास है।
शायद ऐसे विषयों पर स्‍टोरी करना तब गलत नजर आता है जब यह स्‍टोरी केवल बीस फीसद हिस्‍से पर लागू होती हो। इन चीजों के आदी या तो मायानगरी में बसने वाले सितारें हैं या फिर कॉलेजों में पढ़ने वाले कुछेक छात्र छात्राएं या फिर सुंदरता के दीवाने पुरुषों की कसौटी पर खरी उतरने ललक में जद्दोजहद कर रही महिलाएं। मगर मजबूरी का दूसरा नाम तो आप सभी जानते हैं। शायद इंडिया टूडे की भी कोई मजबूरी रही होगी इस स्‍टोरी को इस तरह कवर स्‍टोरी बनाने के पीछे।
वैसे इंडिया टूडे ने एक शब्‍द का इस्‍तेमाल किया है सनक I सनक अर्थ शायद क्रेज या चलन होता है। और जब भी किसी चीज का चलन बढ़ता है तो मीडिया उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने से पीछे तो कभी हटता नहीं I फिर इस चलन को लेकर इंडिया टूडे ने पहले मोर्चा मार लिया कह सकते हैं। हर आदमी को क्रेज ने मारा है I किसी को अगले निकलने के I किसी को रातोंरात सफल अभिनेत्री बनने के I किसी को अपने सह कर्मचारियों को पछाड़ने के I किसी को अपने प्रतियोगी से आगे निकलने के। अब हिन्‍दी समाचार चैनलों को ही देख लो I एक दूसरे से पहले स्‍टोरी ब्रेक करने के क्रेज ने मार डाला I स्‍टोरी ब्रेक करने के चक्‍कर में भाषा का सलीका बदल जाता है I एक न्‍यूज रिपोर्ट या एंकर क्रोधित हो उठता है। पंजाब में प्रकाशित होने वाले पंजाब केसरी के फिल्‍मी दुनिया पेज की कॉपियां सबसे ज्‍यादा बिकती हैं I क्‍यूंकि वह वो छापता है I जो कोई दूसरा नहीं छापता I ऐसे में उसका मुकाबला करने के लिए दूसरे ग्रुपों को भी उसी दौड़ में शामिल होना पड़ेगा I क्‍यूंकि पैसा नचाता है I और अश्‍लीलता बिकती है।
अश्‍लीलता बिकती है व पैसा नचाता है से याद आया I पूजा भट्ट व महेश भट्ट को ही देख लो I आखिर कैसा सनक है कि बाप बेटी जिस्‍म-2 को लेकर बड़े उत्‍सुक हैं I सन्‍नी लियोन को लेने का फैसला महेश भट्ट ने किया I और फिल्‍म बनाने का पूजा भट्ट ने I वहां बाप बेटी के बीच सब कुछ नॉर्मल है I उनको कुछ भी अजीब नहीं लगता I ऐसा लगता है कि पैसे की चमक हर चीज को धुंधला कर देती है I तो शर्म हया क्‍या भला है। 
चलते चलते  इतना ही कहूंगा कि पैसा नचाता है I दुनिया नाचती है। शायद इंडिया टूडे हिन्‍दी पत्रिका वालों की भी कुछ ऐसी ही कहानी होगी वरना इतनी इज़्ज़तदार पत्रिका ऐसी स्‍टोरी को इस तरह एक्‍सपॉज नहीं करती I वैसे भी मीडिया में कुछ वर्जित नहीं रहा। जो मीडिया आज इंडिया टूडे पर उंगली उठा रहा है I वही मीडिया विदेशी महिला अदाकारों की उस बात को बड़ी प्रमुखता से छापता है I जिसमें वह कहती हैं उसने कब कौमार्य भंग किया I कितनी दवाएं व सर्जरियां करवाकर अपनी ब्रेस्‍ट का साइज बढ़ाया। इतना ही नहीं I कुछेक न्‍यूज वेबसाइटों पर तो एक कोने में अभिनेत्रियों की हॉट से हॉट तस्‍वीरें रखी मिलेगीं I और लिखा मिलेगा एडिटर की चॉव्‍इस I अगर एडिटर की चॉव्‍इस ऐसी होगी तो अखबार कैसा होगा, मैगजीन कैसी होगी जरा कल्‍पना कीजिए I मैं फिर मिलूंगा किसी दिन किसी नई चर्चा के साथ। आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
                                           आपका --------- जय सिंह
                   By Kulwant Happy “Unique Man” —Yuvarock.com
                 

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