बुधवार, 19 अप्रैल 2023

माँ के पैर का निशान ...........

कुछ दिन पहले एक परिचित के घर गया था। जिस वक्त घर में मैं बैठा था, उनकी मेड घर की सफाई कर रही थी। 
मैं ड्राइंग रूम में बैठा थाए मेरे परिचित फोन पर किसी से बात कर रहे थे। उनकी पत्नी चाय बना रही थीं। मेरी नज़र सामने वाले कमरे तक गईए जहां मेड फर्श पर पोछा लगा रही थी। 
अचानक मेरे कानों में आवाज़ आई। 

बुढ़िया अभी ज़मीन पर पोछा लगा है....... 

नीचे पांव मत उतारना। मैं बार.बार यही नहीं करती रहूंगी।

मैंने अपने परिचित से पूछा,  "माँ " कमरे में हैं क्या ?

हाँ

जब तक चाय बन रही है, मैं मां से मिल लेता हूं। मैंने बोला ........ 

हा....हा .....। लेकिन रुकिए, अभी.अभी शायद पोछा लगा है,  सूख जाए, फिर जाइएगा । 

क्यों  ! यदि फर्श गीला है तो,  मेड दुबारा लगाएगी। नहीं लगाएगी तो थोड़े निशान रह जाएंगे फर्श पर। क्या फर्क पड़ेगा ?

परिचित थोड़ा हैरान हुए । भैया ऐसा क्यों कह रहे हैं ?

तब तक मैं कमरे में चला गया था। गीले फर्श पर पांव के खूब निशान उकेरता हुआ। 

मैं मां के पास गया। मैंने उनके पांव छुए और फिर उनसे कहा कि चलिए आप भी ड्राइंग रूम में,  वहां साथ बैठ कर चाय पीते हैं। चाय बन रही है। भाभी रसोई में चाय बना रही हैं। 

मैंने इतना ही कहा था। मां एकदम घबरा गईं। 

अरे नहीं,  अभी फर्श पर पांव नहीं रखना है। फर्श गीला है न,  मेरे पांव के निशान पड़ जाएंगे। 

पाव के निशान पड़ जाएंगे,  वाह!  फिर तो मैं उनकी तस्वीर उतार कर बड़ा करवा कर फ्रेम में लगाऊंगा। आप चलिए तो सही।

पर मां बिस्तर से नीचे नहीं उतर रही थीं। उन्होंने कहा कि तुम चाय पी लो बेटा।

तब तक मेरे परिचित भी मां के कमरे तक आ गए थे। 

उन्होंने मुझसे कहा कि मां सुबह चाय पी चुकी है। आप आइए भैया ।

नहीं।  मां के साथ मैं यहीं कमरे में चाय लूंगा।

चमकते हुए टाइल्स पर मेरे जूते के निशान बयां कर रहे थे कि मैंने जानबूझ कर कुछ निशान छोड़े हैं। वो समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर मैंने ऐसा किया ही क्यों ?

उन्होंने मुझसे तो कुछ नहीं कहा, लेकिन मेड को उन्होंने आवाज़ दी।  "बबीता" जरा इधर आना। इधर भैया के पांव के निशान पड़ गए हैं,  उन्हें साफ कर देना।

बबीता ने गीला पोछा फर्श पर लगाया। जैसे ही फर्श की दुबारा सफाई हुई मैं फिर खड़ा होकर उस पर चल पड़ा। दुबारा निशान पड़ गए। 

अब बबिता हैरान थी। मेरे परिचित भी। तब तक उनकी पत्नी भी कमरे में आ चुकी थीं।

उन्होंने कहा-  भैया आइए चाय रखी है। 

मैंने परिचित की पत्नी से कहा कि  "बुढ़िया"  के लिए चाय यहीं दे दीजिए।

मेरे परिचित ने मेरी ओर देखा। 

मैंने कहा कि हैरान मत होइए। 

वो चुप थे। 

मैंने कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि आप लोग मां को प्यार से बुढ़िया बुलाते हैं। 

मेड वहीं खड़ी थी। सन्न। परिचित की पत्नी वहीं खड़ी थी, सन्न। 

परिचित ने पूछा,  क्या  हुआ भैया ?

हुआ कुछ नहीं। मैंने खुद सुना है कि आपकी बबिता मां को बुढ़िया कह कर बुला रही थी। उसने मां को बिस्तर से उतरने से धमकाया भी था। यकीनन काम वाली ने मां को बुढ़िया पहली बार नहीं कहा होगा। बल्कि वो कह भी नहीं सकती उन्हें बुढ़िया। उसने सुना होगा। बेटे के मुंह से। बहू के मुंह से। बिना सुने वो नहीं कह सकती थी। 

जाहिर है आप लोग प्यार से मां को इसी नाम से बुलाते होगे, तभी तो उनसे कहा।

पल भर के लिए धरती हिलने लगी थी। गीले फर्श पर हज़ारों निशान उभर आए थे। 

मेरे परिचित के छोटे.छोटे पांव के निशान वहां उभरे हुए हैं। बच्चा भाग रहा है। मां खेल रही है बच्चे के साथ.साथ। एक निशान, दो निशान, निशान ही निशान। मां खुश हो रही है। बेटे के पांव देख कर कह रही है, देखो तो इसके पांव के निशान। बेटा इधर से उधर दौड़ रहा था। दौड़ता जा रहा था, पूरे घर में। 

बुढ़िया रो रही थी। बहू की आंखें झुकी हुई थीं। बबिता चुप थी। 

"भैया" गलती हो गई। अब नहीं होगा ऐसा। भैया बहुत बड़ी भूल थी मेरी।

मेरे परिचित अपनी आंखें पोंछ रहे थे। 

मैं चल पड़ा। सिर्फ इतना कह कर कि आँखें ही पोंछनी चाहिए। उस फर्श को तो चूम लेना चाहिए जहां मां के पांव के निशान पड़े हों। माँ का सम्मान बिना किसी लोभ-लालच मे नहीं बल्कि अपनी जीवन को सुधारने के लिए करना चाहिये ।  साभार-संजय सिन्हा


प्रस्तुति

जय सिंह

2 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्कार आपकी यह कहानी मेरा दिल छू लेती है क़ाश ऐसा कोई बहू अपनी सास के साथ ना करे। माँ पिता की क़दर ईश्वर से बढ़कर है।

    जवाब देंहटाएं
  2. माँ गयी जब से जहाँ से
    नींद है गायब मेरी
    सूना घर है
    सूनी गलियां
    सूना लगे संसार
    माँ जबतलक़ थी
    खुबशूरत था संसार
    माँ के जैसे अब हैं पापा
    पर हैं बहुत लाचार
    स्नेह मुझको
    मायके का इस क़दर
    हाबी रहा
    ध्यान ना दी कभी
    किसने मुझसे क्या कहा
    जब तलक़ माँ थी घर में
    हम बेटियों का संसार था
    अब तो कमरे भी हमारे
    नहीं हैं
    अब तो हैं मेहमान हम
    कुछ भी हो लेकिन पापा की हम सब जान है
    भाई खुश रहे सदा
    ये दुआ देती मैं सदा
    माँ ने दिया था ज्ञान हम सभी को
    सम्मान दुश्मन का भी करना
    कोई कितना भी डराए
    तुम सभी किसी से ना डरना
    इंसानियत रखना सभी से
    हिम्मत नहीं तुम हारना
    ना पढ़ी थी ना लिखी थी
    थी मग़र खज़ाना
    ज्ञान का
    है गुज़ारिश
    हर किसी से
    बेटी हो या बेटा हो
    माँ किसी की हो
    या पिता हो
    उनको सदा समझना
    वक़्त रहते
    बाद में पछतावे के सिवा
    हाथ कुछ ना आयेगा
    स्वरचित- रीता गौतम- गोरखपुर
    17/04/2024

    जवाब देंहटाएं

अपनी अमूल्य राय या टिपण्णी यहाँ दे